अन्य पर दोषारोपण समाधान नहीं
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* यात्रा पर निकलते हैं . जब तक सकुशल वापिस नहीं पहुँचते कुछ आशंकायें मन में होती हैं .
* बच्चे ,घर के बाहर स्कूल ,कॉलेज या बाजार जाते हैं समय ज्यादा लगा कुछ आशंकायें मन में होती हैं .
* किसी कार्यालय में अपने किसी प्रयोजन का आवेदन लगाया कब हमारा कार्य संपन्न होगा शंका रहती है.
* सामग्री (दूध ,फल अन्य खाद्य ) क्रय किया शंका ,हानिकर मिलावट तो नहीं होगी ?
* परीक्षा कोई दी , परिणाम में कोई अन्याय तो नहीं होगा हमारे साथ ?
* न्याय-मंदिर में कोई पक्षपात के शिकार तो न होंगे आशंका होती है .
* आधा कि. मी. पैदल चलते हैं ,बच्चे से लेकर बड़ों के मुख से अपशब्द ,गालियाँ सुनने मिलेगीं .
जो आसपास हैं हम अच्छों में से ही तो हैं. फिर क्यों इतने छल ,अविश्वास ,लालचियों और अपराधियों का भय .
हम अच्छे नहीं हम यह नहीं मानते .दूसरा भी स्वयं को ख़राब नहीं मानता या जानता . फिर आसपास क्यों इतनी खराबियाँ ?
हमारे अच्छे होने के बाद भी आसपास इतनी शंकाएं ,आशंकाएं और खराबियां , संकेत करती हैं हमें और अच्छा बनना चाहिए .
हम सभी को और अच्छा बनना चाहिए .
अन्य पर दोषारोपण की प्रवृत्ति कोई समाधान ना दे सकेगी .नहीं बदलेंगे तो दिनोदिन बदतर होगीं परिस्थितियाँ .
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