Thursday, April 18, 2013

नारी सम्मान रक्षा में हमारा योगदान



नारी सम्मान रक्षा में हमारा योगदान
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                       बच्चे छोटे होते हैं बाहर की हर बात आकर माँ-पिता को बताते हैं . दस-बारह वर्ष के होते हैं . तो स्कूल ,खेल के दौरान लड़ाई झगड़ों की घटनाओं की घर में चर्चा करते हैं, तो कभी अप्रिय डांट -डपट मिलती है . उससे बचने के लिए बच्चा क्या बताना है क्या नहीं बताना है यह अपनी बुध्दि से यहाँ तय करने लगता है . माँ -पिता को ना बताकर जिन्हें अपने फ्रेंड समझता है उनसे बताता (शेयर) करने लगता है . और यहाँ यह मासूम स्वयं ही अनजाने में अपने जीवन में खतरे का मार्ग प्रशस्त कर देता है .

                   उसकी स्वयं की बुध्दि विकसित हुई नहीं है . हम-उम्र फ्रेंड भी इसी तरह के हैं . अच्छे -बुरे का ज्ञान नहीं है . इधर उधर अनेकों तरह की बुराईयाँ फैली है . अल्प-बुध्दि से उनमें क्या उचित है सोचता और मित्रों से समझता है . यह उसे नहीं मालूम होता ,घर में माँ -पिता संसार में उसके सबसे बड़े हितैषी (well wisher ) हैं . थोड़ा और बड़ा होता है तो सोचे -समझे तरीके से ख़राब रास्ते की और प्रेरित करने वाले मिल जाते हैं .
हमारा समाज बालक (पुरुष) की खराबियाँ सरलता से स्वीकार करता है .उन्हें भूल सुधार करने के पर्याप्त अवसर मिलते हैं . पर बालिका ( बाद की नारी ) के लिए हमारा ह्रदय इतना विशाल नहीं है . उनकी कुछ ही भूलों का परिणाम उनके पूरे जीवन को बुरी तरह प्रभावित करता रह सकता है . अतः सतर्कता हेतु उल्लेख वैसे तो सभी के लिए है पर विशेष कर किशोरियों और युवतियों का ध्यान यहाँ अपेक्षित है .

                       उन्हें स्कूल /कॉलेज और वर्क प्लेस में ये बताने वाले बहुत मिलेंगे कि माँ -पिता पुराने विचारों के होते हैं . फिल्मों ,टीवी और नेट पर भी ऐसे ही भ्रमित करने वाले लोग (अपने अपने स्वार्थ पुष्ट करने वाले ) ढेरों मिल जाएंगे . जो आधुनिकता के नाम पर दुष्प्रेरित कर किशोरियों और युवतियों से ऐसी भूल करवाने के प्रयास करेंगे . जिससे उन तरह के लोगों का कुछ स्वार्थ सिध्द होते हैं . पर इससे किशोरियों और युवतियों का आगे का जीवन बहुत मुश्किलों का हो जाता है .

                   घर में माँ-पिता आज के कुछ अच्छाई और प्रगति कारक साधनों के कम जानकार तो हो सकते हैं . और इस कारण उनसे सलाह कई बार उतनी उपयोगी ना भी मिले . पर यह मानना आवश्यक है कि उनसे बड़ा हितैषी दुनिया में दूसरा नहीं होता है .अतः कुछ कम उपयोगी उनकी बातों को धैर्य से मानना उचित है . उनका जीवन अनुभव बच्चों को सुरक्षित तरह से निश्चित ही अच्छे (थोडा कम हो सकता है ) की तरफ बढायेगा . जबकि अन्य द्वारा प्रचारित उनकी भलाई ज्यादा अच्छा तो शायद ही करे हानि होने का अंदेशा उत्पन्न करेगी . कोई दूसरा अपनी अपेक्षा को मिलाते हुए ही हमारी भलाई चाहेगा . जबकि माँ पिता इसके अपवाद होते हैं . बच्चों की भलाई के लिए अपने हित तज देना उनसे बढ़कर किसी को नहीं आता है .

                   आधुनिकता में सभी अच्छाई नहीं है . निसंदेह कुछ अच्छाइयाँ हैं . हम आरंभिक समय तो माँ-पिता के मार्गदर्शन में चलें . एक उम्र आते आते हम स्वयं समझदार होती हैं . फिर हम स्वयं योग्य होती हैं. हमारी अपनी समझ ही हमें पुराने परम्पराओं में से अच्छाई और आधुनिक साधनों और तरीकों (प्रचारित आधुनिकता में बुराइयाँ अनेक हैं ) की अच्छी बातों का भेद करना सिखाती है. . माँ पिता के हितकारी मार्गदर्शन में हमसे कोई भूल नहीं होती है . हम अपराध बोध या अवसाद में नहीं होने से अपनी पूर्ण योग्यता अपने हितों (और अन्य के भी ) में लगा कर जीवन में अनेकों से काफी आगे हो जाते हैं .

              तब यह भी हमें ज्ञात होता है धन वैभव मात्र से जीवन सफलता का प्रचारित पैमाना अनुचित है . जीवन सार्थक करने के लिए इससे पृथक भी बहुत सी बातें महत्व रखती हैं . हम आगे इस तरह निर्णय करते हुए अपना हित तथा नारी गरिमा बढ़ा सकती हैं . और अन्य के लिए सच्ची प्रेरणा बन सकती हैं . जब हम भली होगीं तो आने वाली पीढ़ी के अच्छे संस्कारों की सुनिश्चितता भी होती है .

नारी सम्मान रक्षा में हमारा योगदान महान हो सकता है .

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