निज परिवार हित संकीर्णता त्यागें
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जीवन में जो सुख उपलब्ध मुझे रहे
कम से कम उतने सभी को मिलते
काश ,आती बुध्दि जीवन में पहले
कम से कम उतने सभी को मिलते
काश ,आती बुध्दि जीवन में पहले
लक्ष्य रहता शेष, बूढ़े हम हो जाते
देख रहे थे नित दिन पशु को चरते
नए ,पुराने साथी से संबंध बनाते
एक दिन जैसे ही कई दिन बिताते
फिर किसी दुखद दिन वे मर जाते
जन्मे वे सृजन कुछ नहीं कर सके
चरते ,लड़ते, जन्मते अपने ही जैसे
दिनचर्या में सेवन ही प्रमुख रखते
दुर्भाग्य ऐसे गवाँ जीवन, वे मरते
देख रहे थे नित दिन पशु को चरते
नए ,पुराने साथी से संबंध बनाते
एक दिन जैसे ही कई दिन बिताते
फिर किसी दुखद दिन वे मर जाते
जन्मे वे सृजन कुछ नहीं कर सके
चरते ,लड़ते, जन्मते अपने ही जैसे
दिनचर्या में सेवन ही प्रमुख रखते
दुर्भाग्य ऐसे गवाँ जीवन, वे मरते
पशु इस तरह विकल्प हीन रहते
है मनुष्य जीवन बहुआयाम लिये
निज परिवार हित संकीर्णता त्यागें
परहित में सुख अनिभूति कर देखें
है मनुष्य जीवन बहुआयाम लिये
निज परिवार हित संकीर्णता त्यागें
परहित में सुख अनिभूति कर देखें
स्वयं को समाज विलग कर ना देखें
हमारा है यह समाज यह दृष्टि लायें
यदि दृष्टिकोण से हममें बुराई दिखें
मिटाने इन्हें सम्मिलित हो जुट जायें
राजेश जैन
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