हो सार्थक जीवन
तो मौत क्या भय?
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सूर्यास्त तक की यात्रा में सूर्य
देता जीवन प्रकाश प्राणियों को
अस्त हो जाये तब नहीं उलहाने
आने दे बारी चन्द्र शीतलता की
अस्त हो उदित होगा अन्यत्र
करेगा पूरे दायित्व सूर्य होने के
भांति सूर्य के फैलाएं सद-प्रेरणा
करें मानवता प्रति कर्तव्य अपने
जन्म अपना एक सच्चाई तो
मौत भी होती अवश्यम्भावी
अपने वश में जीवन जितना
बनने दें उसे युग अनुकरणीय
घट रहे व्यभिचार जहाँ तहाँ
अनैतिक किस्सों की भरमार
करेगा पूरे दायित्व सूर्य होने के
भांति सूर्य के फैलाएं सद-प्रेरणा
करें मानवता प्रति कर्तव्य अपने
जन्म अपना एक सच्चाई तो
मौत भी होती अवश्यम्भावी
अपने वश में जीवन जितना
बनने दें उसे युग अनुकरणीय
घट रहे व्यभिचार जहाँ तहाँ
अनैतिक किस्सों की भरमार
निर्मूल हो सके अस्तित्व बुराई
हेतु निस्वार्थ बनें निजहित तजें
लें
प्रेरणा सूर्य से दायित्व निर्वाह का
जिसे न मिलता कुछ नित चलने से
फिर जो होता संतोष उसके पास
प्राणी को जीवन संबल देने का
फिर जो होता संतोष उसके पास
प्राणी को जीवन संबल देने का
ऐसे आचरण ,कर्म अपने बनायें
हम कुछ को संबल , प्रेरणा दे सकें
सूर्य भांति संतोष होगा अपने पास
हो सार्थक जीवन
तो मौत क्या भय?हो सार्थक जीवन
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