Sunday, April 14, 2013

जालियाँवाला वाला बाग

जालियाँवाला वाला बाग
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94 वर्ष पूर्व का जघन्य हत्याकांड जो नागरिकों की रक्षक समझी जाती सरकार (हम पराधीन थे और शासन -विदेशियों का था ) द्वारा अंजाम दिया गया था . पंजाब के "जालियाँवाला बाग" में सशस्त्र सेना ने निहत्थे निर्दोषों के ऊपर गोलियों के सोलह सौ पचास राउंड दागे . हजार से अधिक निर्दोष जिसमें महिलाएं और मासूम बच्चे भी थे क्रूरता से मार दिए गए थे .
 किसी के साथ कोई अन्य तरह का अन्याय किया जाए ,उसकी क्षमा ,क्षतिपूर्ति और अन्य तरीके से कुछ हद तक भूल सुधार की जा सकती है . पर किसी के प्राण ले लिए जाना ऐसा जघन्य काण्ड होता है जिसकी भूल सुधार किसी भी तरह से संभव नहीं हो सकती . ऐसे क्रूरतम हत्याकांड सिर्फ इतिहास के काले पृष्ट पर हमेशा को दर्ज हो जाते हैं . इतिहासकार इस भावना से उन्हें दर्ज करता है जिससे स्वयं को सभ्य कहने वाला इसके बाद इस तरह के किसी जघन्यता में कभी हिस्सा न ले . 

जिस विदेशी मानव नस्ल के ऊपर इस जघन्यता का दोष जाता है . वह इस के लिए शर्मिंदगी प्रकट करने की हिम्मत जुटाने में 94 वर्ष का समय लेती है. (उनके प्रधानमंत्री शर्मिंदगी का लेख जालियाँवाला बाग में प्रविष्ट कर गए हैं .) घटना के दिन से आज तक और आने वाली शताब्दियों तक जब जब इसकी चर्चा हुई और होगी उनके सर शर्म से झुकने को लाचार होते रहेगें .
94 वर्ष हुए इतने ही बर्बर कुछ और घटनाएँ होती आयीं हैं . जो असभ्यता का ध्योतक है और ये कहती हैं मनुष्य के सभ्य होने में अभी और वर्षों -शताब्दियों की प्रतीक्षा करनी है .

उक्त घटना के शिकार उस समय ना मारे गए होते तो बीते 94 वर्षों के समय में कभी ना कभी स्वाभाविक मौत मर गए होते . इन 94 वर्षों में जलियांवाला में जिन्होंने बंदूकें चलाई या चलाने के आदेश दिए सभी मर गए होंगे . आशय यह 94 वर्ष एक जीवनकाल  से अधिक का समय होता है . ना मारे गए होते तो वे अपने जीवन सपने पूरे कर पाते .कुछ मानवता और समाज के बहुत ही भले भी कार्य कर पाते . लेकिन अपनों के ह्रदय में एक दुःख की तरह बस कर दुनियां से असमय ना चल बसते .

94 वर्ष हुए इसमें वे चले गए ,मारने वाले चले गए . देखने-सुनने  वाले चले गए . लेकिन अन्याय और क्रूरता का खून खराबा से आहत मानवता आज भी विद्यमान है और आने वाले हजारों वर्षों में भी शायद  मानवता पर लगा यह घाव बना रहेगा . 
"यह घाव मुझे एक याचक की तरह लगता है जो मानो सबसे कह रहा है ,दया मांग रहा है ,हे मानव , जिसने जन्म लिया है उस मनुष्य को आप असमय ना मारो ,प्रत्येक की स्वाभाविक मौत अपने समय तो उसे मार ले ही जाती है . उसके पूर्व उसे मिला पूरा जीवन जी लेने दो . हो सकता है पूरे जीवन में वह मानवता का वह अवतार बन जाए जो पूरे मानव समाज को सही पथ दिखा प्रसन्नता संपन्न समाज  की बुनियाद रख दे. "

मनुष्य रूप में हमारा  जन्म तय करने वाला हम सभी को यह योग्यता देता है . कृपया इस योग्यता का हम सभी पूर्ण प्रयोग कर सभी को सुखी बनाते हुए हम स्वतः सुखी हो सके इस हेतु समाज को अपना श्रेष्ठ योगदान अवश्य दें ...

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