Thursday, April 11, 2013

सैध्दांतिक स्तर

सैध्दांतिक स्तर 
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सैध्दांतिक स्तर इस लेख में जहाँ उल्लेख है ,उसमें आध्यात्मिक ,चारित्रिक,सांस्कारिक स्तर  और धार्मिकता सम्मिलित किया गया है .
मनुष्य किसी भी घर परिवार में जन्म लेता है तो जन्म के समय से उसे एक सैध्दांतिक और आर्थिक स्तर अनायास मिलते हैं . जिसमें जीवन यापन का वह आरम्भ से अभ्यस्त हो पलता बढ़ता है . और जो भी शिक्षा के अवसर उसे मिलते हैं उस अनुसार अपना बौध्दिक विकास करता युवा होता है .

यहाँ उसे तय करना होता है कि वह अपने जीवन में सैध्दांतिक या  आर्थिक किस स्तर की कमी (अभाव ) अनुभव करता है और किस स्तर को ऊँचा उठाना उसके लिए आवश्यक है . लगभग पचास वर्ष पहले की भारतीय जीवन शैली में मनुष्य जीवन में  सैध्दांतिक स्तर को आर्थिक स्तर की तुलना में प्रमुखता मिलती थी . लेकिन आधुनिक कही जाने वाली आज की जीवन शैली में इसे पलट दिया है .

अब आर्थिक स्तर ,सैध्दांतिक स्तर  की तुलना में ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाने लगा है . हालांकि आर्थिक स्तर के ऊँचे करने के प्रयास में लेखक को कोई आपत्ति नहीं अनुभव होती . पर इसे ऊँचा करने में लगे बहुत से हमारे चाचा ,भाई और बेटे (अब नारियां भी धन अर्जन में आगे आयीं हैं ) न्याय प्रिय तरीके  भूलते हैं .वह आपत्तिजनक होता है . सिध्दांत स्तर ऊँचा रखने और इसके निरंतर प्रयास करने में न्यायप्रियता अगर प्रभावित होती है तो वह भली दिशा में ही होती है .


समाज में आज बुराई और समस्या बढ़ रही हैं उसमें आर्थिक प्रमुखता की प्रवृत्ति भी प्रमुखतः जिम्मेदार है .
आर्थिक स्तर और सैध्दांतिक स्तर के बीच एक संतुलन बहुत आवश्यक है . जो समाज और देश की बुराई और समस्या को कम करने में सहायक हो सकता है .

प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में समय समय पर अपने जीवन यापन के ढंग की समीक्षा और पुनर्समीक्षा करने की आदत बनाये और निष्कर्ष अनुसार इसमें परिवर्तन करे तो स्वयं उनका ,परिवार का ,समाज का ,देश और मानवता का हित होगा .

इस तरह से प्राप्त मनुष्य रूप में जन्म और जीवन की सार्थकता भी हमें मिल सकेगी .

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