मैं ,नारी, मनुष्य ही हूँ
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तुमसे ही दो आँखे , दो कान हैं तुमसा देख ,सुन मैं लेती हूँ
मेरे दो हाथ और दो पैरों से तुमसा ही कर और चल लेती हूँ
तुम्हारे तन ,मन को देती पीड़ा वही बात मुझे पीड़ा देती है
कुछ बनने उपलब्धि की अनुभूतियाँ मुझे भी ख़ुशी देती है
भिन्न शारीरिक संरचना किन्तु तुमसी ही मनुष्य होती हूँ
भिन्न बने समाज मानदंड से मैं भुगतती ,व्यथित होती हूँ
इक्कीसवीं सदी में आ पहुँची ,दुनिया से हसरत मैं रखती हूँ
मुझे सम्मान ,खुला आकाश दो ,उठने की चाहत मैं रखती हूँ
--राजेश जैन
01-07-2015
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तुमसे ही दो आँखे , दो कान हैं तुमसा देख ,सुन मैं लेती हूँ
मेरे दो हाथ और दो पैरों से तुमसा ही कर और चल लेती हूँ
तुम्हारे तन ,मन को देती पीड़ा वही बात मुझे पीड़ा देती है
कुछ बनने उपलब्धि की अनुभूतियाँ मुझे भी ख़ुशी देती है
भिन्न शारीरिक संरचना किन्तु तुमसी ही मनुष्य होती हूँ
भिन्न बने समाज मानदंड से मैं भुगतती ,व्यथित होती हूँ
इक्कीसवीं सदी में आ पहुँची ,दुनिया से हसरत मैं रखती हूँ
मुझे सम्मान ,खुला आकाश दो ,उठने की चाहत मैं रखती हूँ
--राजेश जैन
01-07-2015
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