Tuesday, July 21, 2015

नारी ,सामने रेपिस्ट

नारी ,सामने रेपिस्ट
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एक एक कर उतरी सवारी , बस में अकेली रह गई मैं
रात अकेले कुछ बुरा न हो , आशंकाओं में घिर गई मैं

अचानक वासना ले दृष्टि में ,समक्ष एक दुष्ट आ गया
संभल बचाव करती ,पहले उसने मुँह कपड़े से बाँध दिया 

हुई दृष्टि कातर मेरी ,छोड़ने ,विनती करती मैं रह गई
तन-मन की पवित्रता गँवा कर ,अचेत पड़ी मैं रह गई

यह पेज लिखता है अब आगे - वह पीड़िता न लिख पाई -
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भारत रत्ना बन सकती थी ,एक संभावना ने मौत पाई
पचास वर्ष का शेष जीवन खो, वह अभागी चर्चा बन पाई

बहन-बेटी जिस परिवार की उस पर विपत्ति घिर आई
दुष्ट बना रेप-मर्डरर उसके ,घर प्रतिष्ठा पर आंच आई 

बने दुष्ट की कुछ पल की हवस ने इक जीवन लील लिया
निर्दोष की मौत ने ,एक को अनब्याहा रहने विवश किया
--राजेश जैन
22-07-2015
https://www.facebook.com/narichetnasamman


 

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