Sunday, April 19, 2015

ख़राब में शामिल न होकर


ख़राब में शामिल न होकर
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चाहें बेटी या बेटा - पढ़ने या जॉब को जब बाहर भेजा जाता है। उससे परिवार की एकमात्र अपेक्षा होती है , वह ऐसे गुण - ज्ञान अर्जित करे जिससे उसके अच्छे जीवन यापन की सुनिश्चितता हो सके।  जिन परिवारों की आर्थिक दशा ठीक नहीं होती वहाँ अपेक्षा यह भी हो सकती है कि बेटा-बेटी परिवार की कुछ आर्थिक मदद करने जितने गुण और आय प्राप्त कर सके।
घर से जब ये बच्चे चलते हैं , ऐसे ही लक्ष्य के साथ निकलते हैं। परन्तु कुछ उम्र ऐसी होती है , कुछ बाहर के वातावरण की दूषिततायें होती हैं। और परिवार , माँ -पिता,  वहाँ की आर्थिक दुर्दशाओं (यदि है तो ) से कुछ दूरियाँ होती हैं। उनके मन से ये लक्ष्य , अपेक्षायें विस्मृत सी होती हैं।  मित्रों ,  फिल्म , नेट सेल फ़ोन और  ग्लैमरस जीवन शैली  आदि साधन  जिनसे करीबी होती है , वे पारिवारिक अपेक्षाओं से विपरीत दिशा की ओर दुष्प्रेरित करते हैं।  जिन बच्चों को घर से मार्गदर्शन मिलते होते हैं , यह जिन्होंने अपने संकल्प स्पष्ट रखे होते हैं वे अपनी निजी अपेक्षाओं , पारिवारिक अपेक्षाओं और बाहर के इस वातावरण के बीच एक उचित संतुलन रख अपने संयत कदम अपनी मंज़िल और एक उत्कृष्ट जीवन की दिशा में जारी रखते हैं।
लेकिन दुर्भाग्य से बहुतेरे ऐसे होते हैं , जिनमें ड्रग , स्मोक , ड्रिंक्स , शारीरिक संबंधों की लतें और लेविश्ली खर्चों की आदतें हो जाती हैं , कई बार ये इस हद पर पहुँचती हैं कि सम्हलने का अवसर दुबारा जीवन में नहीं मिलते । नतीजा एक अवसादपूर्ण जीवन होता है , जो स्वयं की समस्या के साथ ही  समाज , देश और मानवता के लिए भी समस्या और बुराई होता है।
जरूरत देश और समाज के इस दुष्प्रेरित करते वातावरण को बदलने की है , ना कि इस खराबी में बदलकर अपनी अच्छाई खोने की । यह एक दो के वश में नहीं किन्तु एक -दो से आरम्भ कर सब में संकल्प लाने से सम्भव हो सकता है। तब " हम ख़राब में शामिल न होकर ख़राब परिदृश्य को बदल सकते हैं ".
--राजेश जैन
20-04-2015

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