Saturday, April 25, 2015

नारी - पुरुष

नारी - पुरुष
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मनुष्य की इन दो विजातियों का अस्तित्व उस दिन से है जिस दिन से सृष्टि रचना हुई है और उस दिन तक रहेगा जिस दिन तक सृष्टि कायम रहेगी। इसलिए हम नारी या पुरुष जो भी हैं यह होते हुये भी नारी /पुरुष के अस्तित्व की तुलना में हमारा जीवनकाल (और एक व्यक्ति महत्व ) अत्यंत नगण्य है।
इसलिए यदि हम जीवन में बुरे से बुरे भी काम कर लें तब भी  इस अस्तित्व के होने को कुछ भी क्षति नहीं पहुँचा सकेंगें। किन्तु यदि हमें मिले छोटे से जीवन में हमारे कर्म ,सद्कर्मों की सीमा में हों तो हम इस जीवन को न सिर्फ स्वयं ज्यादा आनंद से जी सकते हैं बल्कि हमारे समाज का या हमारी पीढ़ी का जीवन भी ज्यादा आनंददायी बना सकते हैं। हम सद्कर्मों की परंपरा देकर आगामी समाज , जिसमें हमारी आगामी पीढ़ी का जीवन है , उसे एक अच्छी विरासत दे सकते हैं। वैसे भी ,एक अच्छी विरासत अपने बच्चों को सौंपना हर माँ -पिता के कर्तव्यों में निहित होता है।
इस तरह समय और अस्तित्व की दृष्टि से बेहद छोटे से महत्व के हमारे जीवन को हम अति महत्वपूर्ण बना सकते हैं। स्वार्थ लोलुपता की प्रवृत्ति से ऊपर उठ कर और बात -बात में अहं के टकरावों से मुक्त करके यदि उल्लेखित कर्तव्यों के प्रति अगर हम सजग होते हैं , तो मानव समाज की अति स्वछँदता की हानिकारक दिशा में बदलाव हम ला सकते हैं।
"हम नारी -पुरुष में अनावश्यक भेदभाव न करें। समतुल्य सम्मान और अवसरों का वातावरण बनायें। छल छोड़ , परस्पर विश्वास कायम करें। देह भूख के प्रभाव पर नियंत्रण करें। अपने ही जैसी दूसरों में भी उनकी अपनी पसंद-नापसंद हो सकती है इसका विचार कर सीमाओं से बाहर जाने का प्रयास न करें। "
अगर ऐसा हम करते हैं , तो निश्चित ही अपने परिवार की सुरक्षा हम बढ़ा लेते हैं। क्योंकि हमारे परिवार में दोनों ही सदस्य हैं , जिन्हें घर के बाहर समय -असमय निकलना भी है , और कुछ सदस्यों का हमारे बाद भी जीवन रहना है . यह सिलसिला निरंतर भी रहना है। इतना सब प्रत्यक्ष में परिवार प्रेम दिखायेगा और परोक्ष में यही समाज /देश और हमारे मानवता प्रति प्रेम का द्योतक होगा। "हमारे ये नेक कर्म हमें महत्वहीन से अति महत्वपूर्ण बना सकते हैं ."
--राजेश जैन
26-04-2015
https://www.facebook.com/narichetnasamman

 

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