Saturday, April 18, 2015

निर्दोष स्वप्न

निर्दोष स्वप्न
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9-10 वर्षीया बेटी एक विदाउट यूनिफार्म में स्कूल जाने के लिए बसस्टॉप पर बैठी है।  स्पष्ट है , आज उसका बर्थडे है।  नए वस्त्रों को धारण कर बर्थडे के दिन अतिरिक्त प्रसन्न उसके हृदय में उमंग और नयनों में जीवन के सुंदर स्वप्न हैं। कवि इस पल के दृश्य से एक कविता की प्रेरणा ले अपना निवेदन आपके समक्ष रखता है …


सुंदर , सुशीला वह बसस्टॉप पर बैठी है
अपने माँ पिता की प्राण से प्यारी बेटी है
चमकती आँखों में निर्दोष स्वप्न सुंदर
दर्शाते , दुनिया बुराइयों से दूर वह बेटी है


कटु धरातल से अनजान आज , वह बेटी है
पूरे होंगे स्वप्न? इससे निडर हो वह बैठी है
दुनिया, समाज ना निर्दोष ,अनजान इससे
लगती सजीली ,हम में से किसी की बेटी है


ज्योंही कुछ वर्ष और चढ़ेंगे उसके जीवन में
बेटी, वासना स्त्रोत होगी दुनिया की नज़रों में
निर्दोष ,सुंदर आज के स्वप्न बिखरेंगे उसके
सम्मान सुरक्षा प्रश्न उभरेंगे उसके जीवन में


सभी को मिलते हैं सपने निर्दोष जब इतने
जीवन में बढ़कर क्यों न रहते निर्दोष इतने
अपने अपने लिए खींचतान एवं प्रयासों में
सुस्वप्न क्यों बना लेते हम दुःस्वप्न  इतने


बेटी-बहन हमारी उसे बेटी-बहन ही रहने दें
वासना प्रवाह को अपनी पत्नी संग बहने दें
स्वप्न अपने जीवन के पूरे करें इस तरह कि
मिटे न स्वप्न अन्य के ,यत्न अपने होने दें
--राजेश जैन
18-04-2015
https://www.facebook.com/narichetnasamman

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