Friday, April 10, 2015

दोषपूर्ण दिशा दर्शन

दोषपूर्ण दिशा दर्शन
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भारत के स्वतंत्र होने के बाद नए सिरे से निर्माण और सृजन आरम्भ होने चाहिये थे । इसमें नई तकनीकों के प्रयोग से ,विचारधारा , समाज और देश को उन्नति को दिशा दी जा सकती थी । जिससे नारी-उत्थान के अवसर सुलभ होते। अंधविश्वासों और कुरीतियों को कम करने के उपाय होते। समाज में समस्यायें और बुराइयाँ कम होती। आज एक अवलोकन ,क्या ऐसा हो सका ?
नई तकनीकें थीं ,क्रमशः समाचार पत्र , फ़िल्में ,रेडियो , टीवी  और अब इंटरनेट। इन सबकी प्रसारण क्षमता व्यापक होती है। इनके प्रयोग से  हमारे हृदय में राष्ट्रनिष्ठा की वैसी भावना लाई जा सकती थी। जैसी जापानी नागरिकों में होती है। कई प्राकृतिक/कृत्रिम आपदाओं से विनष्ट होने के बाद वह स्वाभिमानी देश , गुपचुप तरीके से फिर बन जाता है और छोटा होते हुए भी महाशक्ति बना रहता है।
पहले ,देश के युवाओं , नारियों और नागरिकों को 'दिशा' प्रमुखतया धार्मिक उपदेशों से मिलती थी। धीरे-धीरे धार्मिक कार्यों में लीनता का समय बहुत कम हुआ है । इसके दो प्रमुख कारण हैं - 1. पढ़ने-लिखने के लिए बच्चों ,नारियों और युवाओं का और 2. व्यवसाय और उत्पादन बढ़ाने में सभी का ज्यादा समय लगने लगा ,विकास की दृष्टि से ऐसा उचित है। इसके अतिरिक्त बहुत समय न्यूज़ पेपर ,टीवी (मीडिया) , फिल्मों और अब नेट पर लोगों का व्यय हो रहा है . ये हम सभी के विचार , आचरण और कर्मों की दिशा तय करते हैं। क्या दिशा दे रहे हैं ये क्षेत्र इस पर संक्षिप्त दृष्टि।
$ फिल्म /टीवी धारावाहिक -
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इनका शुध्द प्रयोजन अपने लिए प्रसिध्दि और धन बटोरना है। दर्शक किस मानसिक समझ का है ,और प्रस्तुतियों से समाज पर क्या प्रभाव पड़ता है इससे इन्हें कोई सरोकार नहीं है । हमारे देश के भोज्य पदार्थ बिगड़े , नशे की प्रवृत्ति बढ़ी। समाज में भाईचारे और बहनापे के रिश्तों के स्थान पर गर्लफ्रेंड -बॉयफ्रेंड के रिश्ते पनप गए। सब इन दोषपूर्ण दिशा निर्धारकों (हीरो -हीरोइन और सेलिब्रिटीज) की देन है। नारी विरुध्द यौन अपराध भी इन्हीं से उकसाये गए हैं।
$समाचार पत्र -
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सिर्फ एक उदहारण , समाचार पत्र खाद्य सामग्री में विभिन्न विषैले तत्वों के उल्लेख के समाचार प्रकाशित कर हमें आगाह करते हैं ,वहीं इससे विसंगत ऐसे खाद्य पदार्थों का विज्ञापन भी छापते हैं , जिनके सेवन से शरीर में विषाक्त पदार्थों की मात्रा बढ़ती है।
$टीवी (मीडिया) -
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सिर्फ एक उदहारण ,एक तरफ नारी पर संगीन अपराधों को सनसनीखेज तरह से दिखाया जाता है , वहीं हीरो -हीरोइन और स्पोर्ट्स और अन्य सेलिब्रिटीज के स्वछंद संबंधों को चटकारे वाले अंदाज में दिखाया जाता है। जो दर्शकों में यौन उत्कंठायें बढ़ाकर, नारी पर इन्हीं संगीन अपराधों के कारण बनते हैं।   
$इंटरनेट -
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इसमें विदेशी खुले दृश्यों के अम्बार लगे हुए हैं। हम जैसे विकासशील राष्ट्र का समय उन्हें देखने और नकल करने में जाएगा तो हमारा समाज और राष्ट्र क्या , प्रगति पथ पर बढ़ सकेगा ? फेसबुक , व्हाटसअप एप्लीकेशन का प्रयोग से भी अच्छे वातावरण का निर्माण  किया जा सकता है। लेकिन वहाँ भी गर्लफ्रेंड -बॉयफ्रेंड की मृगतृष्णा जैसी तलाश अनवरत जारी है।
स्पष्ट है बेहद स्वार्थी होकर , हम सब दोषपूर्ण दिशा दर्शन में व्यस्त हैं , और चाहते हैं , हमारा जीवन अच्छा हो। नारी को सम्मान और सुरक्षा मिले , उन्हें प्रगति के समान अवसर मिलें। सोचने की जरूरत है। समझने की जरूरत है, किसे हम फॉलो करें?
--राजेश जैन
11-04-2015

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