Tuesday, April 7, 2015

ना दुराचार - ना देह व्यापार

ना दुराचार - ना देह व्यापार
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हर प्राणी प्रजाति में नर-मादा के बीच शारीरिक संबंध हुआ करते हैं। अन्य प्राणियों से भिन्न मनुष्य मस्तिष्क ने समय के साथ इन संबंधों को एक आवरण और व्यवस्थित रूप दे दिया है । इन संबंधों के स्थायित्व के लिए विवाह और परिवार होने की रीति बनाई है । इन संबंधों के साथ परस्पर प्रणय , सम्मान, सुरक्षा, विश्वास और सहयोग की सुनिश्चितता के उपाय किये हैं । विवाह और परिवार में पति-पत्नी के मध्य ये संबंध सहज स्वाभाविक और स्वीकार्य किये गए हैं । भारतीय संस्कृति में इन्हें 'एक के एक से' ,अनुमोदित हैं। अन्य संस्कृतियों में एक के कुछ से मान्य रखे गए हैं। किन्तु सभी संस्कृति में परस्पर प्रणय , सम्मान ,सुरक्षा, विश्वास और सहयोग के साथ ही इन संबंध का अस्तित्व स्वीकृत है। ऐसे संबंधों में जबरदस्ती सभी जगह वर्जित और अपराध है।
ये संबंध इतने सर्वव्यापी और सहज होने के बाद भी , विशेष कर नारी पर जबरदस्ती  होने पर हेय , अपमानजनक और अपराध हैं। जबरदस्ती में  परस्पर प्रणय , सम्मान, सुरक्षा, विश्वास और सहयोग इन भाव के अभाव होने से नारी हृदय अपमानित होता है। विशेषकर भारतीय समाज में इस तरह की पीड़िता पर ही ज्यादा दोष और कलंक मढ़ने की कुप्रवृत्ति , नारी के जीवन को अभिशप्त करती है। कुछ ऐसे संबंध नारी की मजबूरियों को पैसे की कीमत से स्थापित किये जाते हैं। ऐसे संबंध भी समाज में अच्छे नहीं कहे जाते हैं।
आजकल इस तरह की जबरदस्ती के लिए पुरुष यह कहकर दोष नारी पर मढ़ता है कि उनके भड़काऊ कपड़ों ने उसे संबंध निमंत्रण का भ्रम दिया। ये सब बातें अनावश्यक बहानेबाज़ी है , घिनौने अपराध को न्यायसंगत सिद्ध करने की कोशिश हैं। पुरुष , जब नारी को सम्मान, सुरक्षा, विश्वास और सहयोग के बिना और प्रणय आदान प्रदान बिना इसे किसी नारी पर करता है ,तब यह मनुष्य होना नहीं होता है। भारतीय संस्कृति से बाहर की बात भी लें तो जहाँ ऐसे संबंध एक से अधिक के साथ भी वर्जित नहीं किये गए हैं , क्या वहाँ की नारी किसी के भी साथ ऐसे संबंध  उत्सुक होती है ? नहीं , क्योंकि भले ही उनके ऐसे संबंध एक से अधिक से होते हैं , लेकिन जिससे भी होते हैं , उनसे  भले ही पूरे जीवन के लिए प्रणय और सम्मान न मिला हो जीवन के कुछ समय उन्हें यह उस पुरुष से मिलता है।
हमारे यहाँ बढ़ रहे इन नारी विरुध्द अपराध की सख्ती से रोकथाम जरुरी है , और समाज रीतियाँ इस तरह परिवर्तित करने की अनिवार्यता है , जिसमें पीड़ित नारी नहीं - ज़बरदस्ती करने वाले पुरुष का जीवन अभिशप्त होता हो ।  इन दो प्रभावशाली व्यवस्था के साथ ही हम इस बात पर गर्व कर सकते हैं कि हम भारतीय हैं , हमारा समाज और संस्कृति भव्य है एवं पुरुष और नारी दोनों मनुष्य होने से हमारे देश में समानता के जीवन अवसर पाते हैं।
--राजेश जैन
08-04-2015
https://www.facebook.com/narichetnasamman    

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