Friday, April 24, 2015

मोबाइल फॉर्मेटिंग और मरना

मोबाइल फॉर्मेटिंग और मरना
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आज लेख एक युवा की इस चिंता पर 'भगवान मरने के पहले , पाँच मिनट देना , मोबाइल फॉर्मेट करना होगा '. बहुतों को  हो सकती यह चिंता ,क्या संकेत करती है ? यह बताती है , हम जिसे अपने जीवन के लिए अच्छा होना जानते हैं और जीवन में हमें जो अच्छा लगता है उसमें साम्यता नहीं है।
चिकित्सा विज्ञान ने बताया , कम उम्र में सेक्स या प्रेगनेंसी नारी शरीर के लिए उचित नहीं है। तद्-अनुसार बालविवाह की कुरुति के विरुध्द जनचेतना लाई गई , अच्छा है अब बालविवाह कम हो गए हमारे समाज में।
जब सेक्स इस तरह अनुचित था , तब एक और संगत बात होनी चाहिए थी , बाल/किशोर मन को सेक्स विचारों से परे रखना था। किन्तु , कुछ लोगों की धन , प्रसिध्दि और वासना की भूख ने सामाजिक दायित्व भुला दिया ,विवाह तो होते हैं 25 वर्ष की उम्र के बाद ,किन्तु प्रसार माध्यमों ने सेक्स प्रमुखता की सामग्री ऐसी और इतनी प्रस्तुत कर दी कि 8-10 साल के बच्चे उसे देख रहे हैं , मिडिल स्कूलों से ही उनकी आपसी चर्चा के विषय यही और 'सेक्स सिंबल'- सेलिब्रिटी हो रहे हैं। इससे यौन अपराध और व्यभिचार में बहुत बढ़ोत्तरी हो गई है।
जीवन उन्नति के लिए दो भिन्न क्षेत्र क्रमश विज्ञान और प्रसार तंत्र के विसंगत ध्येय ने , हमारी संस्कृति (भाईचारा , नारी सम्मान और मर्यादाओं को ) और हमारे समाज के विश्वास , सोहाद्र और परोपकार की भावना और भव्य संरचना को तहस-नहस कर दिया है। अब नारी -पुरुष का परस्पर महत्व एक दूसरे की पिपासा पूर्ती की वस्तु जितना ही सीमित होता जा रहा है।
जिस तरह सेक्स बोध -विचार को पिछले पचास वर्षों में बहुत कम उम्र के बच्चों तक में बढ़ा दिया गया है। उस तरह यदि कोई ऐसा तंत्र विकसित किया जाए जो प्रौढ़ता में आती जीवन समझ , को नवयुवाओं की अनुभूति में ला सके तो हमारा समाज एक सुखी समाज बन सकेगा। जो पीढ़ी ऐसा कर सकेगी , उनकी आगामी पीढ़ियाँ उनका आभार मानेगी।
अन्यथा जो सब चल रहा है वही जारी रहा तो बच्चे हों या बूढ़े सभी एक जैसे सेक्स भूख की पूर्ती के लिए ही भटकते नज़र आयेंगे , और यही मनुष्य होने का अर्थ बचा रह जायेगा। फिर हम सभी चिता पर जाने के पूर्व मोबाइल फॉर्मेट कर अपने कुकर्मों पर पर्दा डालने की फ़िक्र करेंगे।
--राजेश जैन
25-04-2015

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