Sunday, April 12, 2015

सृजन और निर्माण

सृजन और निर्माण
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लेखक के मन में प्रश्न आया , क्यों हमारे देश और समाज में समस्याओं का अम्बार लगा है ? उत्तर जो मिला उसका उल्लेख करता हूँ।
लेखक की मासिक आय जितनी है , उतनी एक चार सदस्यीय परिवार के ठीकठाक जीवन यापन के लिए आवश्यक है। लेखक अनुभव करता है कि बहुतेरे परिवार ऐसे देश में ऐसे हैं , जिनकी आय इतनी नहीं होती है। तब लेखक की सोच और ऐसे कम आय वर्गीय व्यक्तियों के जीवन शैली में स्पष्ट अंतर देखने मिलता है।
लेखक एक तरह से आर्थिक प्रश्नों से लगभग बेपरवाह होकर , देश और समाज के निर्माण पर , नारी समस्याओं पर , समाज की बुराइयों पर विचार कर उपाय तलाशने में जो समय निकाल लेता है , वह कम आय वर्गीय परिवार का सदस्य ,उस समय में भी अपनी आय लेखक जितनी - सुविधाजनक करने के विचार और उपाय में खर्च करता है । तब उनके पास ज्यादा समय नहीं होता कि वे राष्ट्र और समाज , सृजन और निर्माण में अपना योगदान दे सकें।  वे इतना ही करने का विचार और उपाय करते हैं , जितने में वे अपने और परिवार को इन उपलब्ध समस्याओं और बुराई से बचा सकें। उनकी एक तरह से यह निज स्वार्थ प्रमुखता की सोच समाज में चुनौतियों और बुराइयों में कुछ और वृध्दि ही करती है।
लेख के उल्लेख का सार यह है कि हमारे समाज में खुशहाल वातावरण हेतु , सभी की आय कुछ ज्यादा हो सके इसके उपाय करने की आवश्यकता है।  साथ ही देश की सरकार यदि स्वास्थ्य सेवा पर अपना नियंत्रण, ऐसा और  इतना कर सके कि रोगों का त्वरित , समुचित उपचार निशुल्क या कम व्यय में सभी को मिले तब , हमारे देश का नागरिक सामान्य - मूलभूत प्रश्नों से भयमुक्त होकर देश के सृजन और निर्माण के लिए स्वेच्छा से जागृत हो सकेगा।
आखिर में मनुष्य जन्म मिला है तो एक पूरे जीवन की सुनिश्चितता हर मनुष्य के हृदय /मन में सहज ही होती है।
--राजेश जैन
13-04-2015
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