Tuesday, April 21, 2015

आकर्षक

आकर्षक
सुंदर ,(या)भला और (या)अच्छा जो भी है , सभी को मनभावन होता है।  सुहावना लगता है एवं आकर्षित करता है। मनुष्य में प्रमुखतया दो विजातियाँ होती हैं, नारी और पुरुष। अपवाद को छोड़ दें तो -
नारी -नारी या पुरुष -पुरुष के बीच भी परस्पर आकर्षण सुंदर ,(या)गुणी और (या)अच्छा होने के कारण होता (/हो सकता) है। लेकिन बेलाग कहें तो नारी -पुरुष के मध्य एक अतिरिक्त आकर्षण होता (/हो सकता) है।
इस आकर्षण में कतई जरूरी नहीं है कि सिर्फ शारीरिक संबंधों की चाहत की विद्यमानता हो। परिवार में नारी -पुरुष कई रिश्तों में जुड़े रहते हैं , किन्तु शारीरिक संबंध के रिश्ते सिर्फ पति -पत्नी के बीच होते हैं। स्पष्ट है यह प्रदत्त आकर्षण प्रकृति से सिर्फ उस अपेक्षा से हमें नहीं मिला है , जैसा नारी -पुरुष के बीच प्रमुख करते हुए सब तरफ फैलाया /बढ़ाया जा रहा है।
--राजेश जैन
22-04-2015
( fb पर छोटी पोस्ट के प्रति पसंद देखते हुए , यहाँ इतना ही उल्लेख है  ,पैराग्राफ की विस्तृत विवेचना में यदि आपकी रूचि है, तो धन्यवाद सहित विनम्र अनुरोध  शेष लिंक में दिए पेज पर उपलब्ध है।)
https://www.facebook.com/narichetnasamman
वास्तव में जो वस्तु सुंदर , मधुर या भली लगती है। हम उसे सहेज कर और सावधानी से रखते हैं , उसकी सुरक्षा करते हैं। लेकिन नारी -पुरुष के बीच ऐसे आकर्षण के होते हुए और साथ परस्पर भला लगते हुए भी हमसे असावधानी होती/हुई है। नारी -पुरुष के बीच आज कटुता और आरोप -प्रत्यारोप आम हो गया है। आज की जीवनशैली की खराबी है।
??? किसी समय प्राण से अधिक परस्पर प्रेम अनुभव करने वाले , प्रेमी युगल , कुछ समय में परस्पर आकर्षण खो देते हैं , संबंध को पति -पत्नी की स्थायी परिणीति तक नहीं पहुँचा पाते हैं। नतीजा - ब्रेकअप और फिर नई -नये गर्लफ्रेंड -बॉयफ्रेंड की सीरीज होती है। और इस असावधानी से नारी -पुरुष बीच अविश्वास का वातावरण निर्मित हुआ है।
??? जहाँ भाग्यवश प्रेमी युगल अपने बीच आकर्षण और प्रेम को पति -पत्नी होने की परिणीति तक पहुँचा सके हैं , उनमें से कुछ के बीच बाद में वह प्रेम , सम्मान और प्रियता -मधुरता कायम नहीं रह पाती है। दुर्भाग्य से कुछ डिवोर्स ले अलग होते हैं।
??? कुछ पति -पत्नी ज़माने के सामने परस्पर एक दूसरे को सबसे बड़ा मूर्ख बताते पाये जाते हैं। फेसबुक पर ही हम देख सकते हैं सबसे ज्यादा हास्य (फ़ूहड़ ) पति -पत्नी पर बनी पोस्ट से उत्पन्न किया जाता है।
??? चौथी तरह की असावधानी से आज बढ़ रही एक और अप्रिय स्थिति निर्मित हुई है। किसी समय प्राण से ज्यादा बढ़कर प्रिय लगने वाले , पति -पत्नी हो जाने के कुछ ही समय बाद , किसी और से शारीरिक संबंध को उत्सुक दिखते हैं। ये लोग अपनी जीवन खुशियाँ स्वयं दाँव पर लगाते ही हैं। कामांधता में अन्य का जीवन दुखदाई कर देते हैं।
पढ़-लिख गए आज के हम लोगों से अधिक बुध्दिमान हमारे अपढ़ पूर्वज थे। वे परायों से एक मर्यादा में पेश होकर , उनकी और अपनी खुशियाँ जी लेने की सुनिश्चितता करते थे। नारी -पुरुष में तब आकर्षण ,प्रेम , मधुरता समर्पण और विश्वास के साथ आपसी  सम्मान आज से बेहतर था।
अति स्वच्छन्दता और अनियंत्रित वासना में हम उस बात को क्षति पहुँचा रहे हैं , जो जीवन को आनंददायी और सफल करता है।
अति स्वार्थ प्रवृत्ति छोड़ हमें पुष्प को उसकी शाख पर लगे रहने देने की फ़िक्र करना चाहिये जहाँ से ज्यादा खूबसूरती और सुगंध वह बिखेर पाता है।  ना कि उसे तोड़ अपनी शर्ट /बालों में सजाना चाहिए , जहाँ कुछ समय में ही वह मुरझा जाता और मुरझाने पर फेंक दिया जाता है।
--राजेश जैन 
22-04-2015

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