Saturday, May 31, 2014

आदर्श - भूलना नहीं स्मरण रखने होंगे

आदर्श - भूलना नहीं स्मरण रखने होंगे
-----------------------------------------

घर ,धर्मालयों और स्कूल से बच्चे जीवन आदर्शों के बारे में जानते रहे और आदर्श हेतु प्रेरित किये जाते रहे हैं।  लेकिन रूपये और अपना समय खर्च कर फ़िल्में और पत्रिकाओं (खरीद) में स्पेशली सिने कलाकारों और स्पोर्ट्स सेलिब्रिटी के बारे में जो पढ़ते हैं टीवी पर नेट पर (समय खर्च ) कर जो घटिया सामग्री देखते पढ़ते हैं उससे सिखलाये गए आदर्शों से दूर होते जा रहे हैं।

सिटी बसों में , लोकल ट्रेन में महिलायें /छात्रायें जब खड़ी हो यात्रा करती थीं ,तो पुरुष स्वतः सीट छोड़ उन्हें बैठने स्थान देते थे।  अब नारियों के लिए सीटें सुरक्षित करना परिवहन विभाग की जिम्मेदारी है। अर्थात हमने आदर्श अपने आचरण से खोया है।  इसकी जिम्मेदारी प्रबंध (व्यवस्था) के ऊपर है कि वह आदर्श   नियमों से निर्वहन करवाये।

प्रथम पैरा में उल्लेखित कारणों से जैसे ही बच्चे बड़ी क्लास या कॉलेज में पहुँच रहे हैं , मौज मजे के नाम पर वे बातें सीख और करने लगते हैं जो आदर्शों के विपरीत हैं। ऐसे में अब कहा-सुना जाता है। ।

अमित आदर्श पुरुष है , ईमानदारी से ड्यूटी करता है , रिश्वत नहीं लेता , समय से ऑफिस जाता है।
नेहा , बहुत अच्छी टीचर है , क्लास में बच्चों को अच्छा पढाती है।

जो सहज अच्छे कार्य थे , वह अब आदर्श जैसे चर्चित होते हैं क्योंकि ये सहज ड्यूटी जो सभी की होती थी , वह अब कुछ ही अच्छे तरह से निभाते हैं। स्पष्ट होता है , उच्च आदर्श तो सिर्फ किताबों में सिमट गए हैं।  और आदर्श के मानक बहुत घट गए हैं। जिससे साधारण अच्छाइयाँ अब आदर्श हो गयीं हैं।

हमारे घर ,धर्मालयों और स्कूल से बनाई जाने वाली आदर्श की बुनियाद इतनी कच्ची होगी , जो गैर ( आज के सभी सेलिब्रिटी ,और अन्य नायक जो किसी भी घर के लिए गैर ही हैं ) के प्रभाव में कुछ ही समय में ध्वस्त होते रहेगी , तो उच्च आदर्श क्या होते हैं अगली शताब्दी के भारतीय ( आज की पीढ़ी के बच्चे ,नाती -पोते)  नहीं  जानेंगे।

उन्हें बतलाया जाना होगा , जीतने पर खुलती शैंपेन की बोतल भारतीय संस्कृति नहीं है।
सेलिब्रिटी जो "लिव इन रिलेशनशिप"  में रहते हैं वह भारतीय उच्च परम्परा का हिस्सा नहीं है।
फिल्मों के कलाकारों को दिए जाते अवार्ड और उनका व्यापक प्रसारण जो उन्हें लोकप्रिय और नायक रूप में प्रस्तुत करता है। वह समाज को सुदृढ़ करने वाले कारकों को तनिक भी सहायक नहीं होता। वे समाज और देश विकास के लिए नायक नहीं खलनायक हैं। जो बच्चों और युवाओं का बेशकीमती समय लेकर उन के दिमाग में  अप संस्कृति के बीज डालते हैं। और समय अपने पढाई और व्यवसाय पर खर्च करने पर चूक के कारण वे साधारण ही रह जाते हैं।

उनका जो ऊपर उल्लेखित हैं कुछ नहीं जाता , उन्हें देश और समाज के प्रति अपने दायित्वों का बोध ही नहीं रह गया है।  वे आर्थिक सफलताओं और विलासिता और कामुकता में नैतिक दृष्टि खो चुके हैं , वे अपने कृत्यों से ख़राब होते देश और समाज के वातावरण को देखने में समर्थ नहीं रह गए हैं।  लेकिन हम सामान्य लोग(VIP नहीं ) जिनका परिवार और बच्चों की सामान्य सफलताएं ही जीवन निधि होते हैं , बहुत कुछ बिगड़ता है।  अगर हम सभी समय पर नहीं जागे (अब भी समय है ) तो इस शताब्दी में ही हम ऐसी बातों को आदर्श जैसा कहा और बताया जाना देखेंगे।

गरिमा का  परिवार आदर्श परिवार है देखो उनके बच्चे दस -बारह वर्ष के हो गए तब भी कितने आदर से अपने बड़ों से पेश आते हैं।
विवेक और सुनिधि कितने आदर्श पति-पत्नी हैं , विवाह को पंद्रह वर्ष होने पर भी साथ ही रहते हैं।

जरुरत है उस सोच में परिवर्तन की , जिसमें  हम सामाजिक दृष्टि से खलनायकों को अपना आदर्श बना उन्हें अपने ह्रदय , घरों की दीवार और अपने फेसबुक प्रोफाइल और  लाइक में स्थान देते हैं और उनके फॉलोवर हो उन्हें तो पुष्ट और लोकप्रिय करते हैं और स्वयं इतना नीचे रह जाते हैं कि साधारण आदर्श भी हमारे जीवन कर्म और आचरण का हिस्सा नहीं रह पाते हैं।

राजेश जैन
01-06-2014

No comments:

Post a Comment