Sunday, May 4, 2014

जन्म जन्म का साथ

जन्म जन्म का साथ
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पत्नी को लक्ष्य (विशेषकर हास्य दृष्टि से ) करना शायद यह भारतीय शैली नहीं रही होगी. यह शैली पाश्चात्य विश्व से आयातित हुई होगी. लेकिन आज अधिकांशतः जोक्स और पोस्ट में उनका(पत्नी का) उपहास ही झलकता है. अपवाद स्वरूप ही कुछ लेखन पत्नियों की प्रशंसा के दिखाई पड़ते हैं.

वस्तुतः भारतीय पुरुष और नारी , पति-पत्नी के रिश्ते मे जब पिरोये जाते हैं तो उनमें परस्पर आधिपत्य भाव (possessiveness) होता है. भारतीय दाम्पत्य में यही सुन्दरता होती है , और इसलिये भारतीय पति-पत्नी एक दूसरे मे उपहास नहीं श्रध्दा करते हैं.

पाश्चात्य विश्व में यह बंधन अटूट नहीं रहा होने से पति-पत्नी आपस मे भारतीय गाम्भीर्य से यह संबन्ध नहीं निभाते हैं. विवाहित होकर भी वे अन्य पुरुष /नारी में संबन्ध सम्भावना टटोलते हैं , इसलिये अन्य नारी की तुलना से पत्नी में हास्य लक्ष्य करते हैं . स्वछंदता और चंचलता के कारण ही वहाँ परिवार मे आबन्ध (bond) उतना दृढ नहीं होता हैं.

भारतीय दाम्पत्य में पत्नी ,संस्कारों से ही पति मे श्रध्दा और समर्पण रखती है. भारतीय दाम्पत्य का अनूठापन यह होता है कि युवा अवस्था मे पति-पत्नी के मध्य जो मधुरता होती है , लगभग उतनी मधुरता या उससे अधिक प्रौढ़ावस्था के बाद होती है.

अपनी सुशील पत्नी के परिवार और स्वयं के प्रति त्याग , स्नेह और आदर भाव को स्मरण करते हुये प्रौढ़ावस्था में (पुरुष) पति का आधिपत्य भाव (possessiveness)  , उसके (पत्नी ) प्रति अगाध श्रध्दा भाव मे परिवर्तित होने लगता है.  तब आश्रिता (धन ही नहीं अन्यान्य तरीके से ) रही अपनी पत्नी पर की गई सख्ती से उसे पछतावा होता है , वह सोचने लगता है उसके (पत्नी के) प्रेम के प्रतिउत्तर मे उसने (पति ने) जो किया है वह पर्याप्त नहीं है. तब वृध्दावस्था में पत्नी के प्रति अनुराग (fondness) उमड़ता है. वह आगामी जन्मों में भी अपनी पत्नी को ही जीवनसाथी देखना चाह्ता है ,ताकि अपनी पत्नी के लिये वह असीम प्रेम और श्रध्दा से भरपाई कर सके …

भारतीय समाज में इसलिये विवाहितों का जन्म जन्म का साथी कहा जाता है. स्वच्छंदता अपनाती नई पीढ़ी इसी जन्म में तीन साथ कर "जन्म जन्म का साथ" के भारतीय संस्कृति की भव्य विरासत को क्षति पहुँचाकर जीवन से शायद ही कुछ पायेगी  और किसी को सिवाय छल और धोखे के शायद ही कुछ दे पायेगी   ....

(लेख में पाश्चात्य विश्व , और भारतीय युवा पीढ़ी के लिये व्यापक (generalized) रूप से लिखा है , जबकि अनेकों अपवाद हैं , अपवाद लक्षित नहीं किये गये हैं , जिन्हें अन्यथा लगता है वे भारतीय संस्कृति के वाहक हैं और इसलिये प्रशंसा के पात्र भी.  लेख आत्मावलोकन को प्रेरित करने के उद्देश्य से पोस्ट किया गया है , ताकि बढ़ती स्वछंदता जो लेखक की राय मे समाज हितकारी नहीं है पर काबू किया जा सके )

--राजेश जैन
04-05-2014

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