अवसाद (depression) ना लाये ,जीवन संभावनायें बढ़ाये
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प्रत्येक मनुष्य का असीमित सामर्थ्य होता है। जीवन परिस्थिति में घिर वह अपने सामर्थ्य के बारे में गलत धारणा बना लेता है कि "वह तो एक सामान्य ,साधारण सा व्यक्ति है , अपना और परिवार का ही भला कर ले यही उसके जीवन की बड़ी उपलब्धि है। "
बहुत कुछ इतना आत्मविश्वास रख लेते हैं। और "अपना और परिवार का भला" कर ही लेते हैं। अच्छी बात है , आत्मविश्वास से अपना एक जीवन पूरा जीते तो हैं । किन्तु महत्वाकांक्षा और जीवन कामनाओं का भार कुछ के लिये संकट बन जाता है , असंतुलित मानसिक स्थिति में पहुँच वे आत्मविश्वास खो देते हैं. और आधे चौथाई जीवन में ही आत्महत्या का अप्रिय कदम उठाकर अपने उन परिजन मित्रों को बहुत निराश करते ,गहन वेदना देते हैं। जिनको उनका (आत्महत्या कर लेने वाले का ) सिर्फ जीवित देखना ही बहुत सुख ,संतोषकारी होता है, वह (आत्महत्या कर लेने वाला) कुछ और कर सके या नहीं।
अतः आत्महत्या का विचार अवसाद के पलों में जब किसी को उत्पन्न हो तो इस वास्तविकता पर विचार किया जाना चाहिये। जीवन के उन कमजोर पलों में अपना जीवन बचा कर उस संभावना को अस्तित्व देना चाहिये , जिसमें उनके आगे के "जीवन की उपलब्धियाँ असाधारण हो सकती हैं " . आवश्यकता सिर्फ़ इस बात की होती है जो "महत्वाकांक्षा और जीवन कामनायें " इस तरह असंतुलन निर्मित करती हैं उनकी पुनर्समीक्षा स्वयं ही या कुछ हितैषियों के सहयोग से की जाये।
ऐसा करने पर निश्चित ही अनन्त कारण ध्यान में आयेंगें , जो नये जीवन ललक का संचार ह्रदय में करेंगें। आप (अवसादग्रसित व्यक्ति) को लग सकता है कि उसके पास तो ऐसा शक्तिशाली जीवन है जो स्वयं का तो छोडो बहुत से वंचितों का भी हित कर सकता है। जैसे ही यह विचार आपको मिले आप आत्महत्या का ख्याल स्थगित कर दें , यह मानते हुये कि व्यक्तिगत कामनाओं की अपेक्षा से तो मै तो मर चुका हूँ (आत्महत्या तो करने जा रहे थे ना ) अब मुझे सिर्फ वंचितों के सहारे के लिये ज़ीना है। जैसे ही आप कुछ वंचित को (अनेकों हैं ) जीवन सहारा देंगे आपको वह आनन्द और संतोष मिलेगा जो आपका खोया आत्मविश्वास पुनः स्थापित कर देगा। तब आपकी कामनाएं ,महत्वाकांक्षाएं सिर्फ़ आपकी निज अपेक्षा मात्र की ना होकर अन्य की भी अपेक्षाओं से प्रेरित होगी।
जिस पल से आपकी कामनाओं और महत्वाकांक्षाओं में अन्य की उचित अपेक्षाओं का समावेश हो जायेगा , उस पल से आप मानसिक रूप से पूर्ण निरोगी हो जाओगे। आपको उस पल इसमें स्वयं पर गर्व(बहुमान ) होगा क्योंकि तब आप देख सकोगे कि इस तरह से पूर्ण मानसिक स्वस्थ आसपास मे थोड़े ही हैं। अधिकतर
कोई किसी और कोई किसी दूसरी मानसिक ग्रंथि का शिकार होकर अनायास समाज को कुछ बुराई में योगदान रहा है।
तब आप ऐसी मानसिक ग्रंथि के उपचार के लिये कार्य करने लगेंगे , जो समाज की बुराई मिटाने में समर्थ होंगी।
निश्चित ही आप आत्महत्या से खत्म कर लेने वाले उस शेष जिये जीवन को बचा पायेंगे जिसमें आप जीवन में ऐसी ऊँचाइयां छूं पायेंगे जिन तक बिरले ही पहुँच पायें हैं.
--राजेश जैन
15-05-2014
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प्रत्येक मनुष्य का असीमित सामर्थ्य होता है। जीवन परिस्थिति में घिर वह अपने सामर्थ्य के बारे में गलत धारणा बना लेता है कि "वह तो एक सामान्य ,साधारण सा व्यक्ति है , अपना और परिवार का ही भला कर ले यही उसके जीवन की बड़ी उपलब्धि है। "
बहुत कुछ इतना आत्मविश्वास रख लेते हैं। और "अपना और परिवार का भला" कर ही लेते हैं। अच्छी बात है , आत्मविश्वास से अपना एक जीवन पूरा जीते तो हैं । किन्तु महत्वाकांक्षा और जीवन कामनाओं का भार कुछ के लिये संकट बन जाता है , असंतुलित मानसिक स्थिति में पहुँच वे आत्मविश्वास खो देते हैं. और आधे चौथाई जीवन में ही आत्महत्या का अप्रिय कदम उठाकर अपने उन परिजन मित्रों को बहुत निराश करते ,गहन वेदना देते हैं। जिनको उनका (आत्महत्या कर लेने वाले का ) सिर्फ जीवित देखना ही बहुत सुख ,संतोषकारी होता है, वह (आत्महत्या कर लेने वाला) कुछ और कर सके या नहीं।
अतः आत्महत्या का विचार अवसाद के पलों में जब किसी को उत्पन्न हो तो इस वास्तविकता पर विचार किया जाना चाहिये। जीवन के उन कमजोर पलों में अपना जीवन बचा कर उस संभावना को अस्तित्व देना चाहिये , जिसमें उनके आगे के "जीवन की उपलब्धियाँ असाधारण हो सकती हैं " . आवश्यकता सिर्फ़ इस बात की होती है जो "महत्वाकांक्षा और जीवन कामनायें " इस तरह असंतुलन निर्मित करती हैं उनकी पुनर्समीक्षा स्वयं ही या कुछ हितैषियों के सहयोग से की जाये।
ऐसा करने पर निश्चित ही अनन्त कारण ध्यान में आयेंगें , जो नये जीवन ललक का संचार ह्रदय में करेंगें। आप (अवसादग्रसित व्यक्ति) को लग सकता है कि उसके पास तो ऐसा शक्तिशाली जीवन है जो स्वयं का तो छोडो बहुत से वंचितों का भी हित कर सकता है। जैसे ही यह विचार आपको मिले आप आत्महत्या का ख्याल स्थगित कर दें , यह मानते हुये कि व्यक्तिगत कामनाओं की अपेक्षा से तो मै तो मर चुका हूँ (आत्महत्या तो करने जा रहे थे ना ) अब मुझे सिर्फ वंचितों के सहारे के लिये ज़ीना है। जैसे ही आप कुछ वंचित को (अनेकों हैं ) जीवन सहारा देंगे आपको वह आनन्द और संतोष मिलेगा जो आपका खोया आत्मविश्वास पुनः स्थापित कर देगा। तब आपकी कामनाएं ,महत्वाकांक्षाएं सिर्फ़ आपकी निज अपेक्षा मात्र की ना होकर अन्य की भी अपेक्षाओं से प्रेरित होगी।
जिस पल से आपकी कामनाओं और महत्वाकांक्षाओं में अन्य की उचित अपेक्षाओं का समावेश हो जायेगा , उस पल से आप मानसिक रूप से पूर्ण निरोगी हो जाओगे। आपको उस पल इसमें स्वयं पर गर्व(बहुमान ) होगा क्योंकि तब आप देख सकोगे कि इस तरह से पूर्ण मानसिक स्वस्थ आसपास मे थोड़े ही हैं। अधिकतर
कोई किसी और कोई किसी दूसरी मानसिक ग्रंथि का शिकार होकर अनायास समाज को कुछ बुराई में योगदान रहा है।
तब आप ऐसी मानसिक ग्रंथि के उपचार के लिये कार्य करने लगेंगे , जो समाज की बुराई मिटाने में समर्थ होंगी।
निश्चित ही आप आत्महत्या से खत्म कर लेने वाले उस शेष जिये जीवन को बचा पायेंगे जिसमें आप जीवन में ऐसी ऊँचाइयां छूं पायेंगे जिन तक बिरले ही पहुँच पायें हैं.
--राजेश जैन
15-05-2014
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