Saturday, May 17, 2014

नवयुवाओं की अपेक्षायें और उन पर दायित्व

नवयुवाओं की अपेक्षायें और उन पर दायित्व
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करने के लिए बहुत समय पड़ा है , अभी तो मजे कर लें। बाद में कुछ अच्छा कर लेंगे। नवयुवा अधिकाँश इस तरह सोचते और करते हैं। और फिर अपना जीवन अति साधारण ही बना पाते हैं।  भ्रष्ट या अनैतिक ढंग से,  धन अर्जित कर लेना और वह भी बाद उसका अय्याशी के लिए उपयोग कर लेना जीवन की बहुत बड़ी सफलता नहीं होती है, लेकिन धन वैभव अर्जित कर लेने को ही जीवन सफलता का मानक मान लेने की आज की प्रथा अधिकाँश उन बुराइयों की जड़ हैं , जिनका घटना या देखा और भोगा जाना पीड़ाजनक होता है। हम सभी को आंदोलित करता है। धन कैसे अर्जित और व्यय किया जाना यह आज लेख का विषय वस्तु नहीं है।

बल्कि विषयवस्तु नवयुवाओं को जीवन वास्तविकता बताने का एक प्रयास है , कि जीवन वास्तव में उतना बड़ा नहीं होता जो वे अपनी तीस वर्ष की आयु तक मानने का भ्रम रखते हैं। वास्तव में आरम्भ में 70 -80 वर्ष का जीवनकाल बड़ा सा प्रतीत होता है. जो 10 -10 और 20-20 वर्ष के स्पेल (अवधि) में किस तरह निकल गया पता नहीं चल पाता है। और जीवन संध्या सामने आ खड़ी होती है।  जीवनकाल छोटा  ही होता है यह   55 -60 वर्ष की अवस्था में अनुभव होता है. अर्थात इसका दुःख तब होता है जब करने का सामर्थ्य बहुत कम शेष रह जाता है। बीच बीच में हमें यह अनुभव तो होता है कि जैसा नहीं गुजारना चाहता था  वैसा समय गुजरता जा रहा है.  लेकिन कुछ बहानों और लाचारियां (गलत सिध्दांतों से उत्पन्न ) के चलते हम दिमाग से झटकते चले  जाते हैं। 55 -60 वर्ष की अवस्था में भी जो सामर्थ्य रह जाता है ,वह भी "ठगा सा रह गया"  वाली स्थिति में व्यथित और पछतावे में होने में बीतती जाती  है। गलत जीवनशैली के कारण अस्वस्थ हो जाने का खतरा भी होता है। ऐसे में रोग और अवसाद से संघर्ष करते हुए ,जो युवाकाल में हम सोचते  रहे थे कि बाद में कुछ अच्छा और भलाई का काम भी करेंगे ऐसी ख़ुशख़याली का भ्रम टूट जाता है। जो नहीं रह जाना हम चाहते थे  वैसा अति साधारण सा जीवन सफर पूरा करने को हम बाध्य हो जाते हैं ।

लेखक के लेख के लक्षित(scope) पाठक वर्ग वैसे तो नवयुवा हैं , किन्तु कुछ प्रबुध्द पाठक जो वरिष्ठ हैं ही प्रायः इसे (लेखों को ) सर्वथा व्यर्थ जाने से बचा रहे हैं।वे पढ़ते हैं प्रशंसा कर प्रोत्साहन भी  पर  नवयुवा प्रायः मातृभाषा हिंदी में लिखे आलेख को पढ़ने में पिछड़ा या पुरातन पंथी कर्म मानते हैं। यह वह कारण भी है (हिंदी आलेख को ना पढ़ना ) जो नवयुवाओं को हमारी संस्कृति , समाज और परिवार से मिले संस्कारों से दूर करते हैं। लेकिन कुछ युवा पाठक भी भाग्यवश मिल रहे हैं , पूरा श्रम उस थोड़े से लाभ के लिए लेखक प्रतिदिन करता है। (लाभ से आशय सामाजिक दायित्व निर्वहन है , कोई सम्मान अथवा धन अपेक्षित नहीं है )


 लेखन जारी रखते हुए हम एक उदाहरण से समझेंगे ,  पृथ्वी के उस खंड पर जहाँ सड़क पहली बार निर्मित की जा रही है। पूर्व योजना और दूरदर्शिता से सड़क निर्माण करना होता है , जैसे जो नदी नाले राह में पड़ेंगे उन पर बरसात में जल स्तर कितना हो सकता है (ब्रिज निर्माण के लिए ), अगले 20 -25 वर्षों में यातायात भार कितना अनुमानित होगा ( मार्ग चौड़ाई निर्धारण के लिए ) इत्यादि। अगर सड़क निर्माण पूर्व योजना और दूरदर्शिता से नहीं की जाती है तो बहुत जल्द कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

इसी तरह ,प्रत्येक नवयुवा के लिए  आगामी जीवन की पूर्व योजना और दूरदर्शिता होने की आवश्यकता होती है । आधुनिक तकनीक का ज्ञान  ,और धन अर्जन को सहायक बहुत पाठ्यक्रम उपलब्ध हैं किन्तु मानवीय जीवन को उत्कृष्ट तरह से जीने की कला के लिए ना तो कोई पाठ्यक्रम उपलब्ध हैं और ना ही उपन्यासों , दूरदर्शन और फिल्मों से इस तरह की ठीक प्रेरणा किसी को मिल पाती है। समय व्यर्थ करने वाले गेम , फूहड़ मनोरंजन युक्त फ़िल्में और दूरदर्शन धारावाहिक तो अनेकों देखे जा सकते हैं जिसमें भी आज हमारा मूल्यवान समय व्यर्थ होता है,  जो इनसे बचता है , उसकी कसर भी व्यर्थ नेट सर्फिंग ( अधिकाँश नेट मटेरियल ) पूरी कर देता है। ये सब जीवन भटकाव के कारण बनते हैं। और अंततः पकी आयु में पश्चाताप ही देते हैं।



जो अन्य के अनुभवों से सीख अच्छा जीवन तय करते हैं वे जीनियस (अत्यंत निपुण ) होते हैं , जो स्वयं के अनुभवों से सीख, बढते हैं वे  मेधावी (intelligent) होते हैं जबकि जो स्व-अनुभवों (ठोकर खाने ) से भी ना सीखें वे औसत से कम कहे जाते हैं।


अतः जो समझ हमें सामान्यतः 50 -55 वर्ष की आयु में आ पाती है , वह अच्छी प्रेरणा और मार्गदर्शन से 30 -35 वर्ष तक हमारी बन सके तो हम अपने जीवन की योजना दूरदर्शिता से तय करने में सफल हो सकते हैं।  जिससे हमारा जीवन अति साधारण सा ना रह कर असाधारण बनता है।  जो जीवन संतोष का कारण बनता है, किसी तरह के पछतावे के भाव से मुक्त भी रहता है।  और राष्ट्र और समाज हितकारी भी होता है।

सच्ची प्रेरणा के लिए इस लेखक को ना पढ़ना हो ना पढ़ें पर अच्छे तरह की विषयवस्तु को पढ़ना हॉबी (रुचि ) बनायें तो सभी लिये सुखद होता है।  यही आज की समस्या और बुराई से सभी को मुक्त करा सकता है ,जीवन में सार्थकता अनुभव करा सकता है।


--राजेश जैन
17-05-2014







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