हम वृध्दावस्था में भी सुन्दर रह सकते हैं
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आसपास की अनेकों बातें प्रतिदिन होती हैं , उन पर व्यस्तता या कहें उनसे उदासीनता के कारण कोई ध्यान नहीं जाता। लेखक की दृष्टि , कल अनायास एक गाय पर गई। जो बूढी हो गई थी , कहीं तो हड्डियां दिख रही थी और कहीं (पेट पर ) माँस गठन छोड़ लटक रहा था। तब विचार आया
बूढ़ा होने पर मनुष्य ही नहीं हर प्राणी सुन्दर या उतना आकर्षक नहीं दिखता , जितना बालावस्था या अपने यौवनकाल में रहा होता है। यद्यपि अन्य प्राणियों से मनुष्य एक बात में भिन्न होता है। उसके पास उन्नत मस्तिष्क होने से , अपने बिताये एक दीर्घ जीवन ( तब वह बूढ़ा होता है ) में उसे जीवन स्वरूप जानने ,देखने मिला होता है। अपने अनुभवों की विवेचना कर उससे सीखते हुए वह , अपने कर्म ,आचरण व्यवहार में बहुत ही सुन्दरता , मधुरता और न्याय को स्थान दे सकता है।
अपने सहयोगी कर्मों , करुणाशीलता और दयालुपन से परिवार ही नहीं आसपड़ोस और समाज में अन्य की प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से भलाई कर सकता है। ऐसे रचनात्मक या सृजन के कार्य में लीन हो सकता है जिससे समाज हित और मानवता प्रवाहित होते हैं। सच्ची प्रेरणा का संचार कर सकता है , जिससे आसपास की बुराई में कमी आती है और जिससे उसमें समाज और बच्चे सुखद जीवन देखते हैं। तब वह (बूढ़ा व्यक्ति ) सब को प्यारा होता है।
बूढ़ा हो जाने पर जब दैहिक आकर्षण खो रहा होता है या सुन्दर नहीं रह गया होता है तब भी वह प्यारा इसलिए लगता है , क्योंकि वह मन या आंतरिक रूप से सुन्दर हो गया होता है।
मन -मस्तिष्क से सुन्दर हो जाने की यह क्षमता मनुष्य में अन्य प्राणियों से भिन्न और अच्छी होती है , जो मस्तिष्क से मनुष्य से हीन होने से बुढ़ापे में तन की दृष्टिकोण से अनाकर्षक ही दिखते हैं। जबकि हो सकता है "इस अवस्था में मनुष्य अपनी युवावस्था से ज्यादा समाज में प्रिय हो जाये। "
हम मनुष्य हैं , बचपन से हमें प्रशंसा की दृष्टि भली लगती रही है। जब क्षमता से और रूप से हम उतने सक्षम नहीं रह पायेंगे उस वृध्दावस्था में भी हम आकर्षक और प्रिय लगते हुए , सभी की प्रशंसा पा सकते हैं ।उस हेतु हमें अपने कर्मों , आचरण और मधुर व्यवहार को अपने व्यक्तित्व में समाहित कर लेना चाहिए। इन गुणों के कारण हमारी जीवन संध्या भी सुखद होगी और समाज की भलाई की दृष्टि से भी हमारा सकारात्मक योगदान होगा।
इस प्रकार हम वृध्दावस्था में भी सुन्दर रह सकते हैं ……
60 -70 वर्ष समाज में रहने के कारण उसके प्रति हमारे दायित्वों का यही उचित निर्वहन है।
--राजेश जैन
16-05-2014
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आसपास की अनेकों बातें प्रतिदिन होती हैं , उन पर व्यस्तता या कहें उनसे उदासीनता के कारण कोई ध्यान नहीं जाता। लेखक की दृष्टि , कल अनायास एक गाय पर गई। जो बूढी हो गई थी , कहीं तो हड्डियां दिख रही थी और कहीं (पेट पर ) माँस गठन छोड़ लटक रहा था। तब विचार आया
बूढ़ा होने पर मनुष्य ही नहीं हर प्राणी सुन्दर या उतना आकर्षक नहीं दिखता , जितना बालावस्था या अपने यौवनकाल में रहा होता है। यद्यपि अन्य प्राणियों से मनुष्य एक बात में भिन्न होता है। उसके पास उन्नत मस्तिष्क होने से , अपने बिताये एक दीर्घ जीवन ( तब वह बूढ़ा होता है ) में उसे जीवन स्वरूप जानने ,देखने मिला होता है। अपने अनुभवों की विवेचना कर उससे सीखते हुए वह , अपने कर्म ,आचरण व्यवहार में बहुत ही सुन्दरता , मधुरता और न्याय को स्थान दे सकता है।
अपने सहयोगी कर्मों , करुणाशीलता और दयालुपन से परिवार ही नहीं आसपड़ोस और समाज में अन्य की प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से भलाई कर सकता है। ऐसे रचनात्मक या सृजन के कार्य में लीन हो सकता है जिससे समाज हित और मानवता प्रवाहित होते हैं। सच्ची प्रेरणा का संचार कर सकता है , जिससे आसपास की बुराई में कमी आती है और जिससे उसमें समाज और बच्चे सुखद जीवन देखते हैं। तब वह (बूढ़ा व्यक्ति ) सब को प्यारा होता है।
बूढ़ा हो जाने पर जब दैहिक आकर्षण खो रहा होता है या सुन्दर नहीं रह गया होता है तब भी वह प्यारा इसलिए लगता है , क्योंकि वह मन या आंतरिक रूप से सुन्दर हो गया होता है।
मन -मस्तिष्क से सुन्दर हो जाने की यह क्षमता मनुष्य में अन्य प्राणियों से भिन्न और अच्छी होती है , जो मस्तिष्क से मनुष्य से हीन होने से बुढ़ापे में तन की दृष्टिकोण से अनाकर्षक ही दिखते हैं। जबकि हो सकता है "इस अवस्था में मनुष्य अपनी युवावस्था से ज्यादा समाज में प्रिय हो जाये। "
हम मनुष्य हैं , बचपन से हमें प्रशंसा की दृष्टि भली लगती रही है। जब क्षमता से और रूप से हम उतने सक्षम नहीं रह पायेंगे उस वृध्दावस्था में भी हम आकर्षक और प्रिय लगते हुए , सभी की प्रशंसा पा सकते हैं ।उस हेतु हमें अपने कर्मों , आचरण और मधुर व्यवहार को अपने व्यक्तित्व में समाहित कर लेना चाहिए। इन गुणों के कारण हमारी जीवन संध्या भी सुखद होगी और समाज की भलाई की दृष्टि से भी हमारा सकारात्मक योगदान होगा।
इस प्रकार हम वृध्दावस्था में भी सुन्दर रह सकते हैं ……
60 -70 वर्ष समाज में रहने के कारण उसके प्रति हमारे दायित्वों का यही उचित निर्वहन है।
--राजेश जैन
16-05-2014
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