अल्पवय बेटी
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मेरी बेटी टेलीफोन पर ( हमने मोबाइल फ़ोन नहीं दिलाया था ) , अपनी एक फ्रेंड से पढाई (स्टडी) के सिलसिले में अक्सर बातें किया करती थी। एक दिन जब उसकी फ्रेंड का फोन आया वह रो रही थी। उसने मेरी बेटी को रोते रोते बताया उसके पापा की सुबह हार्ट-अटैक (हृदयाघात ) से डेथ हो गई है।
बेटी की फ्रेंड होने से उससे हम पुत्रीवत स्नेह अनुभव करते थे। अभी वह छोटी सी ही थी , ऐसे में पापा की मौत ऐसा भयानक सा दुखद समाचार शायद फोन पर कभी नहीं मिला था। ऐसा समाचार मेरी बेटी अपनी फ्रेंड को कभी कहेगी इस सोच के साथ उसकी फ्रेंड का दुःख ,पीड़ा या वेदना की कल्पना मुझे हुई।
दोनों ही उस समय सेंट जोसेफ कान्वेंट ,जबलपुर में पढ़ती थीं। बेटी की बहुत अच्छी फ्रेंड होने पर भी उसके पापा से मेरा कोई परिचय नहीं था। मुझे इस बात का पछतावा हुआ कि क्यों मैंने अपना स्वभाव रिज़र्व बनाया हुआ है। निश्चित ही मेरा पूर्व परिचय उसके पापा से होता तो मै उन्हें मॉर्निंग वॉक के लिए प्रेरित करता।
डॉक्टर्स तो उपचार के लिए होते हैं किन्तु आकस्मिक आने वाले हार्ट अटैक्स के लिए हर बार रोगी उन तक पहुँच ही जाए ऐसा नहीं हो पाता। नियमित वॉक इस आकस्मिक और घातक (fatal) रोग के खतरे को निश्चित ही कम करता है।
हम इस बात का अवश्य चिंतन -मनन रखें "जब तक हम अपने और और औरों के चहेते हैं या /और हमारी उपयोगिता उनके लिए हैं" हम अपनी अपेक्षाओं के साथ उनके लिए भी अपने जीवन को बनाये रखने के गंभीर प्रयास करें। वैसे तो मौत का समय होता है और जीवन पर आसन्न खतरे अनेकों हैं। किन्तु हमें अपनी लापरवाही से अपना जीवन नहीं खोना चाहिए।
पढ़ने वाले सभी पापा या मम्मी हैं , नहीं हैं तो किसी के कभी बनेंगे। अधिकाँश का मै अपरिचित ही हूँ , किसी को मिलकर या मोबाइल पर यह सब कह नहीं सकूँगा , लेकिन अल्पवय में पापा या मम्मी का खो देना किसी बच्चे के ऊपर यह गहन दुःख ना आये , इस हेतु पोस्ट के माध्यम से सन्देश अवश्य देता हूँ।
"सभी स्वस्थ , विचार ,कर्म ,दिनचर्या और जीवनशैली अपना कर स्वयं और इस समाज को स्वस्थ बनायें "
और मिले जीवन को पूरा जिया जाना अपने सामर्थ्य से सुनिश्चित करें। असमय हमारी मौत हमारे प्रियजन पर एक तरह का अभिशाप सा ही होता है।
--राजेश जैन
31-05-2014
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मेरी बेटी टेलीफोन पर ( हमने मोबाइल फ़ोन नहीं दिलाया था ) , अपनी एक फ्रेंड से पढाई (स्टडी) के सिलसिले में अक्सर बातें किया करती थी। एक दिन जब उसकी फ्रेंड का फोन आया वह रो रही थी। उसने मेरी बेटी को रोते रोते बताया उसके पापा की सुबह हार्ट-अटैक (हृदयाघात ) से डेथ हो गई है।
बेटी की फ्रेंड होने से उससे हम पुत्रीवत स्नेह अनुभव करते थे। अभी वह छोटी सी ही थी , ऐसे में पापा की मौत ऐसा भयानक सा दुखद समाचार शायद फोन पर कभी नहीं मिला था। ऐसा समाचार मेरी बेटी अपनी फ्रेंड को कभी कहेगी इस सोच के साथ उसकी फ्रेंड का दुःख ,पीड़ा या वेदना की कल्पना मुझे हुई।
दोनों ही उस समय सेंट जोसेफ कान्वेंट ,जबलपुर में पढ़ती थीं। बेटी की बहुत अच्छी फ्रेंड होने पर भी उसके पापा से मेरा कोई परिचय नहीं था। मुझे इस बात का पछतावा हुआ कि क्यों मैंने अपना स्वभाव रिज़र्व बनाया हुआ है। निश्चित ही मेरा पूर्व परिचय उसके पापा से होता तो मै उन्हें मॉर्निंग वॉक के लिए प्रेरित करता।
डॉक्टर्स तो उपचार के लिए होते हैं किन्तु आकस्मिक आने वाले हार्ट अटैक्स के लिए हर बार रोगी उन तक पहुँच ही जाए ऐसा नहीं हो पाता। नियमित वॉक इस आकस्मिक और घातक (fatal) रोग के खतरे को निश्चित ही कम करता है।
हम इस बात का अवश्य चिंतन -मनन रखें "जब तक हम अपने और और औरों के चहेते हैं या /और हमारी उपयोगिता उनके लिए हैं" हम अपनी अपेक्षाओं के साथ उनके लिए भी अपने जीवन को बनाये रखने के गंभीर प्रयास करें। वैसे तो मौत का समय होता है और जीवन पर आसन्न खतरे अनेकों हैं। किन्तु हमें अपनी लापरवाही से अपना जीवन नहीं खोना चाहिए।
पढ़ने वाले सभी पापा या मम्मी हैं , नहीं हैं तो किसी के कभी बनेंगे। अधिकाँश का मै अपरिचित ही हूँ , किसी को मिलकर या मोबाइल पर यह सब कह नहीं सकूँगा , लेकिन अल्पवय में पापा या मम्मी का खो देना किसी बच्चे के ऊपर यह गहन दुःख ना आये , इस हेतु पोस्ट के माध्यम से सन्देश अवश्य देता हूँ।
"सभी स्वस्थ , विचार ,कर्म ,दिनचर्या और जीवनशैली अपना कर स्वयं और इस समाज को स्वस्थ बनायें "
और मिले जीवन को पूरा जिया जाना अपने सामर्थ्य से सुनिश्चित करें। असमय हमारी मौत हमारे प्रियजन पर एक तरह का अभिशाप सा ही होता है।
--राजेश जैन
31-05-2014
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