लेख और तर्क ( or Post & Comments )
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" लेखनी से अपनी बुराई की दिशा मोड़ दो
जो बढाती बैर है उस लेखनी को तोड़ दो
समस्यायें समाज की हमारी अपनी ही हैं
सुलझाकर समाज से बुराई पीछे छोड़ दो "
सभी की भाँति लेखक को नित्य ही विचार आते हैं जो (कुछ के जैसे) लेख या पोस्ट के रूप में फेसबुक और ब्लॉग पर प्रस्तुत किये जाते हैं। इन पर बहुत से तर्क बहुत ही अच्छे होते हैं , जिनसे लेखक अपना चिंतन सुधारने में सुविधा पाता है। कुछ मित्रों के तर्क और कमेंट्स पर लेखक की लेखनी चुप भी रहती है। इसका कारण यह नहीं होता कि लेखक कुछ लिख नहीं सकता , बल्कि इसलिये कि जिन सीमाओं का निर्धारण अपनी लेखनी के लिए किया है और जिन सामाजिक आव्हान को लेखनी समर्पित है ,चर्चा की दिशा वहाँ से भटक जाने की आशंका होती है।
लेखक का उद्देश्य अराजनैतिक , व्यक्तिगत आक्षेप रहित और धर्म विवाद से परे होकर लिखना है। लेखक ने इन्हें प्रकाशित करने के लिए कभी प्रयास भी नहीं किया है। सामाजिक दायित्वों को स्वतः अनुभूत कर इसे एक दिनचर्या बनाई है।
"सर्वसम्मत" , लेखक की लेखनी से कभी लिखा जा सकेगा इतना अति आशावाद भी नहीं है। क्योंकि सर्वसम्मत तो प्रवर्तक भी प्रस्तुत नहीं कर सके हैं। हाँ , परिस्थितियों में लेखक क्या करने की सोचता है या समाधान जानता है , वह ही लेख होता है। लेखक का विश्वास है , सभी तो नहीं , काफी अधिक समस्यायें और बुराई सुलझ सकती है , यदि थोड़े विवेक विचार की आदत हम सभी बनायें। लेखक यह करता है।
लेखक राजनैतिक , प्रेम प्रसंगों पर , सिनेमा हस्तियों पर लिखता तो ज्यादा चलता , लेकिन चले या ना चल सके "दायित्वों और कर्तव्य को अनुभव करने को प्रेरित करना लेखन का लक्ष्य " होता है । अधिकारों की बात तो साधारणतया हर जगह कही और सुनी जाती है। धन ,मान या अन्य अपेक्षाओं को कोई स्थान नहीं है। इसलिए विनम्रता से अनुरोध कि किसी को तुष्ट करने के लिए नहीं , मानवता के पोषक के रूप में ही अपनी पहचान रखना लेखक का अभिप्राय होता है।
--राजेश जैन
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" लेखनी से अपनी बुराई की दिशा मोड़ दो
जो बढाती बैर है उस लेखनी को तोड़ दो
समस्यायें समाज की हमारी अपनी ही हैं
सुलझाकर समाज से बुराई पीछे छोड़ दो "
सभी की भाँति लेखक को नित्य ही विचार आते हैं जो (कुछ के जैसे) लेख या पोस्ट के रूप में फेसबुक और ब्लॉग पर प्रस्तुत किये जाते हैं। इन पर बहुत से तर्क बहुत ही अच्छे होते हैं , जिनसे लेखक अपना चिंतन सुधारने में सुविधा पाता है। कुछ मित्रों के तर्क और कमेंट्स पर लेखक की लेखनी चुप भी रहती है। इसका कारण यह नहीं होता कि लेखक कुछ लिख नहीं सकता , बल्कि इसलिये कि जिन सीमाओं का निर्धारण अपनी लेखनी के लिए किया है और जिन सामाजिक आव्हान को लेखनी समर्पित है ,चर्चा की दिशा वहाँ से भटक जाने की आशंका होती है।
लेखक का उद्देश्य अराजनैतिक , व्यक्तिगत आक्षेप रहित और धर्म विवाद से परे होकर लिखना है। लेखक ने इन्हें प्रकाशित करने के लिए कभी प्रयास भी नहीं किया है। सामाजिक दायित्वों को स्वतः अनुभूत कर इसे एक दिनचर्या बनाई है।
"सर्वसम्मत" , लेखक की लेखनी से कभी लिखा जा सकेगा इतना अति आशावाद भी नहीं है। क्योंकि सर्वसम्मत तो प्रवर्तक भी प्रस्तुत नहीं कर सके हैं। हाँ , परिस्थितियों में लेखक क्या करने की सोचता है या समाधान जानता है , वह ही लेख होता है। लेखक का विश्वास है , सभी तो नहीं , काफी अधिक समस्यायें और बुराई सुलझ सकती है , यदि थोड़े विवेक विचार की आदत हम सभी बनायें। लेखक यह करता है।
लेखक राजनैतिक , प्रेम प्रसंगों पर , सिनेमा हस्तियों पर लिखता तो ज्यादा चलता , लेकिन चले या ना चल सके "दायित्वों और कर्तव्य को अनुभव करने को प्रेरित करना लेखन का लक्ष्य " होता है । अधिकारों की बात तो साधारणतया हर जगह कही और सुनी जाती है। धन ,मान या अन्य अपेक्षाओं को कोई स्थान नहीं है। इसलिए विनम्रता से अनुरोध कि किसी को तुष्ट करने के लिए नहीं , मानवता के पोषक के रूप में ही अपनी पहचान रखना लेखक का अभिप्राय होता है।
--राजेश जैन
27-05-2014
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