लड़कों से गलती
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हम भारत की नारी हैं
पुष्प और चिंगारी हैं
बिखेरती तो सुगंध हम
छेड़ो तो जला सकती हैं
"नारी को पुष्प और ज्वाला दोनों की विशेषतायें उचित संतुलन के साथ ग्रहण करनी होगीं "
देश में नारी शोषण की घटनायें होती हैं।
चूंकि हम सभी परिवार में रहते हैं।
हमारे घर में नारी सदस्य होती हैं।
अपने घर की नारी पर इस तरह की जबरदस्ती ना हो हम आशंकित होते हैं ।
उनके सुरक्षा के उपाय करते हैं।
लेकिन सामाजिक परिस्थितियां , अपर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था पर भयाक्रांत ही रहते हैं।
रोष में होते हैं , कहीं विरोध और आंदोलन में खड़े होते हैं।
अलग अलग लोगों के आश्वासन ,टिप्पणी और उपाय भी सुनने /पढ़ने मिलते हैं।
कुछ घटना के कारण दर्शाते हैं। कभी पीड़िता पर ही असावधानी या अन्य तरह दोष भी लगाते हैं।
सब के बीच कभी अपराधी को ही कुछ तर्कों से बचाया जाता है।
तब उत्तेजित हम होते हैं। उन को इन शब्दों में कोसते हैं। "लड़के गलती उनकी बहु बेटियों के साथ करेंगे तब समझेंगे "
लेकिन ऐसा कोसना भी नारी का असम्मान ही है , भले ही वह कुतर्की के घर की नारी के लिए कहा जाए।
नारी तो किसी भी घर की है ,हमारी संस्कृति में श्रध्दा और सम्मान की ही अधिकारी है।
इसलिये हमारे कहे शब्द और उनसे व्यवहार इतने संयत हों कि कोई कोमलहृदया नारी जाने -अनजाने में आहत ना हो जाए।
नारी कई बार दोषी भी लगती है , किन्तु उसके दोषी होने तक के क्रम और परिस्थितियों पर गौर करें तो पाएंगे कि उसे समाज की "पुरुष प्रधान शैली " ने वहाँ पहुँचाया है। वास्तव में "पुरुष प्रधानता " सहज थी। पुरुष बलशाली है ,आगे तो उसी को रहना उचित था। लेकिन रक्षक का ही भक्षक होना या ऐसी प्रवृत्ति होना खराबी है।
हम पुरुष , प्रधान होने के दायित्वों को सही प्रकार निभायें। अन्यथा प्रधान होने का भाव छोड़ें।
--राजेश जैन
22-05-2014
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हम भारत की नारी हैं
पुष्प और चिंगारी हैं
बिखेरती तो सुगंध हम
छेड़ो तो जला सकती हैं
"नारी को पुष्प और ज्वाला दोनों की विशेषतायें उचित संतुलन के साथ ग्रहण करनी होगीं "
देश में नारी शोषण की घटनायें होती हैं।
चूंकि हम सभी परिवार में रहते हैं।
हमारे घर में नारी सदस्य होती हैं।
अपने घर की नारी पर इस तरह की जबरदस्ती ना हो हम आशंकित होते हैं ।
उनके सुरक्षा के उपाय करते हैं।
लेकिन सामाजिक परिस्थितियां , अपर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था पर भयाक्रांत ही रहते हैं।
रोष में होते हैं , कहीं विरोध और आंदोलन में खड़े होते हैं।
अलग अलग लोगों के आश्वासन ,टिप्पणी और उपाय भी सुनने /पढ़ने मिलते हैं।
कुछ घटना के कारण दर्शाते हैं। कभी पीड़िता पर ही असावधानी या अन्य तरह दोष भी लगाते हैं।
सब के बीच कभी अपराधी को ही कुछ तर्कों से बचाया जाता है।
तब उत्तेजित हम होते हैं। उन को इन शब्दों में कोसते हैं। "लड़के गलती उनकी बहु बेटियों के साथ करेंगे तब समझेंगे "
लेकिन ऐसा कोसना भी नारी का असम्मान ही है , भले ही वह कुतर्की के घर की नारी के लिए कहा जाए।
नारी तो किसी भी घर की है ,हमारी संस्कृति में श्रध्दा और सम्मान की ही अधिकारी है।
इसलिये हमारे कहे शब्द और उनसे व्यवहार इतने संयत हों कि कोई कोमलहृदया नारी जाने -अनजाने में आहत ना हो जाए।
नारी कई बार दोषी भी लगती है , किन्तु उसके दोषी होने तक के क्रम और परिस्थितियों पर गौर करें तो पाएंगे कि उसे समाज की "पुरुष प्रधान शैली " ने वहाँ पहुँचाया है। वास्तव में "पुरुष प्रधानता " सहज थी। पुरुष बलशाली है ,आगे तो उसी को रहना उचित था। लेकिन रक्षक का ही भक्षक होना या ऐसी प्रवृत्ति होना खराबी है।
हम पुरुष , प्रधान होने के दायित्वों को सही प्रकार निभायें। अन्यथा प्रधान होने का भाव छोड़ें।
--राजेश जैन
22-05-2014
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