Friday, May 23, 2014

नवयुवाओं का कर्तव्य


नवयुवाओं का कर्तव्य
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युवा होने का अर्थ सीमित नहीं होता। युवा को मात्र घर की आजीविका अर्जन कर , अपने पालकों से यह जिम्मेदारी अपने कंधे पर ले लेना या साथ उठाना ही नहीं  होता है। युवा हैं इसलिए सिर्फ विपरीत लिंगीय के प्रति आकर्षित रहें , या सिर्फ उन्हें रिझाने के उपाय ही करें. ऐसे कुछ अर्थ ही नहीं होते हैं युवा होने के। युवाओं को सिर्फ 18 वर्ष में देश का राजनीतिक विकल्प यानि सरकार चुनने के लिए मताधिकार मिल जाता है। अर्थात वह देश की नीति , व्यवस्था और विकास के लिए मत रखने का अधिकारी होता है। इसलिये युवा का कर्तव्य राष्ट्र निर्माण का होता है।

राष्ट्र निर्माण , समाज के माध्यम से होता है।  इसलिए युवाओं को जब मताधिकार मिलता है तो उनका कर्तव्य समाज के प्रति भी होता है। इसलिए  सिर्फ अपनी युवावस्था की सहज अनुभूति ( विपरीत लिंगीय आकर्षण ) के चलते सिर्फ उसमें ही खो जाना ,अपने कर्तव्यों को भूलना ही है।  वह देश जिसमें 50 प्रतिशत से ज्यादा नवयुवा हैं।  उसका लगभग सारा दारमोदार युवा कन्धों पर है।  अपनी स्वछंद हरकतों से उसने उस समाज व्यवस्था को क्षति नहीं पहुँचानी चाहिए , जो भारतीय संस्कृति और संस्कारों अनुरूप निर्मित हुआ था। बदलाओ की दिशा बेहतर होनी चाहिये। परिवर्तन क्षति पहुँचाने वाले हों तो ऐसे परिवर्तनों से यथा स्थिति भली होती है।

भारतीय परिवारों में अंधविश्वासों और कुछ अवैज्ञानिक रीति रिवाजों से कुछ तरह की खराबी आ गई थीं।  तब भी परिवार पक्के सूत्रों से बँधे हुए थे।  विवाह होने के बाद दाम्पत्य में स्थायित्व होता था।  प्रगतिकारी बदलाव अच्छे थे। नारी भी घर के बाहर आ अपनी क्षमता अनुरूप अर्निंग मेंबर हो अच्छी बात थी ।  नारी में भी आत्मविश्वास पैदा हो अच्छा  था।  वह पढ़ लिख रही थी  यह भी बहुत अच्छा था।

किन्तु घर के बाहर नारी की अधिक हुयी उपलब्धता को पुरुष वर्ग द्वारा सिर्फ उनसे शारीरिक तौर पर सम्बन्ध की संभावना बढ़ने की दृष्टि से देखना , और उन्हें रिझाने के एक सैकड़ा उपाय करना अच्छा नहीं है।  नारी भी आधुनिक दिखने के नाम पर ये सब अंगीकार करे ठीक नहीं है।

नवयुवा पुरुष और नारी , दोनों ही सोचें , क्या उन्हें ऐसा जीवनसाथी /जीवनसंगिनी पसंद होगी जिसके 4 -6 से शारीरिक संबंध रहे हों।  भारतीय संस्कारों के लालन -पालन में पति -पत्नी के रूप में उन्होंने परस्पर निष्ठा देखी और जानी होती है।  स्वयं भूल करे किन्तु , स्पाउस की भूल शायद ही किसी को पसंद होगी।  लुका छिपी का अवैध संबंधों का खेल ज्यादा छिपता नहीं।  यह सब को समझना होगा। और उजागर होने पर विवाह विच्छेद होते हैं। यह भी समझना होगा। यह भी समझना होगा जिन पति-पत्नियों के वैवाहिक सम्बन्ध टूटते हैं ( जिनमे भारतीय समाज में भी पश्चिमी देशों की तरह वृध्दि हो रही है) उनके बच्चे किस तरह असुरक्षित और हीनता के शिकार होते हैं.  अवैध संबंधों के कारण  ब्लैक मेलिंग के शिकार होने पर मानसिक और सामाजिक मान की क्षति की पूर्वकल्पना करना भी उचित होगा। अपने कर्तव्यों को समझ इस भव्य भारतीय समाज संरचना का बचाव करना होगा।  इसे पाश्चात्य समाज ना बनने देना होगा।

इसलिये सेक्स लालसा में ही ना खोना , और यौन संबंधों के लिए अधिक साथियों की चाह से बचना होगा।  भले ही व्यवसायिक कंपनियां अपने प्रोडक्ट को प्रोन्नत करने के लिये ,इन्हें सुरक्षित और आनंद देने वाला अपने आकर्षक विज्ञापनों में प्रदर्शित करती हों। अगर एकाधिक संबंधों की चाह में सभी भटकेगें तो कैसे एकनिष्ठ जीवनसाथी/जीवन संगिनी किसी को मिल सकेगी ?

युवा उम्र में ही दूरदृष्टि विकसित करनी होगी।  युवा उम्र की भूलें ,आगामी जीवन को अभिशापित करती हैं , यह भली-भांति इसी उम्र में देख लेने पर आज के युवा अपना पूरा जीवन और अपने परिवार के सुख ,आनंद ,हर्ष या प्रसन्नता को बचा सकते है।  अपने समाज के हित सुनिश्चित कर सकते हैं।

वस्तुतः घर के बाहर नारी निकली है , या उसे माँ-पिता-भाई-पति ने बाहर की सहमति दी है। तो वह उसकी उन्नति के लिए या उन्नति की अपेक्षा से है।  उस नारी का परिवार भी वही या वैसा होता है ,जैसा  हम सभी का है। अर्थात जहाँ बेटी ,बहन ,पत्नी या बहु से अपेक्षा उसके सुशील रहने की होती है। जहाँ चाह तो वही विद्यमान रहती है कि नारी घर के बाहर भी सम्मान ,आत्मविश्वास और कुछ धन भी अर्जित करे।  लेकिन अपने को चरित्रवान रख कर।  अपनी कमलोलुपता के वशीभूत  उपहारों , होटलों के खानपान या कुछ शीघ्र धनार्जन के सपनों से उसे हम ना बहकाएं।  घर से बाहर जिस भी अभिलाषा , या किसी बाध्यता में वह आई है  उसे बाजारू बनने की ओर ना मजबूर करें।  बल्कि उस दायित्व (अपने / उसके ) को समझें ,जिससे भारतीय नारी की लाज और गरिमा का बचाव किया  जा सके जो हमारी संस्कृति में हम (पुरुष ) उसे  देते थे , या स्वयं नारी उस उच्च स्थान पर आसीन रहती थी .

और इस तरह हम ही अपने देश का भविष्य सुखद बना सकते हैं।  निर्मित होने वाली देश की नई सरकार के दायित्वों और उनके अच्छे कार्य के मंतव्य को इस तरह सहयोग दे सकते हैं.

राजेश जैन
24-05-2014

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