Sunday, May 18, 2014

हम पर यह चुनौती है

हम पर यह चुनौती है
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सभ्य हुआ है मानव यह कहा जाना उचित सा नहीं लगता , उचित यह है कि मनुष्य ने अपने आविष्कारों और निर्माण से जीवन सुविधाजनक बनाया है। इन का भी लाभ अभी अधिकांश तक पहुँचना शेष है।  इन आविष्कारों और निर्माण की क्या कीमत हमने चुकाई है , और कितनी कब तक और भरनी पड़ेगी उस पर उल्लेख हम कभी और करेंगे।  मानव सभ्यता उन्नत हुई जब सभी कह रहे हैं तो "सभ्य हुआ है मानव यह कहा जाना उचित सा नहीं लगता " तब लेख इस वाक्य से क्यों आरम्भ किया गया ? अभी लेख उस पर केंद्रित करते हैं।

वास्तव में हमने चक्र उलटा चलाया हुआ है।  कोई अपराध होता है , अपराधी छुपता है , अपराधों को छुपाता है।  सीधा कोई पीड़ित पक्ष हुआ तो उसकी शिकायत (रिपोर्ट) करता है।  जांच पड़ताल होती है। कभी अपराध सिध्द किया जा पाता है। और सिध्द करने में महीनों से लेकर वर्षों लगते हैं।  तब अपराधी को दंड दिया जाता है। बहुत से अपराधों को सिध्द ही नहीं किया जा पाता।  और जिनका सीधा सीधा कोई पीड़ित पक्ष नहीं होता (अप्रत्यक्ष  अपराध -indirect crime) उनकी तो रिपोर्ट ही नहीं होती इसलिए इन दोनों तरह की परिस्थिति में अपराधी सुरक्षित रहता है। अप्रत्यक्ष  अपराध( indirect crime)  का एक उदाहरण लिखना बात को समझने के लिये सरलता देगा।  दो लोग एकांत में मिले किसी कार्य को करने -कराने को लेकर रिश्वत का लेन - देन हुआ।  फिर काम हो गया, अप्रत्यक्ष  अपराध (indirect crime) हुआ , जिसकी कोई शिकायत भी नहीं करेगा।

हमारा न्याय तंत्र , हमारा सुरक्षा तंत्र इतना सक्षम कभी नहीं हो सकेगा कि हर अपराध को पकड़ सके और उस पर न्याय कर सके।  इसलिए अपराध होते रहेंगे , बल्कि हम भी किसी किसी अपराध का हिस्सा होते रहेंगे।  अपराध की सजा से बचते रहेंगे।  लेकिन अपराधों के कारण देश और समाज की बुराई से व्यथित होते रहेंगे।  समय समय पर, अन्य के किये अपराध पर आन्दोलनरत होकर व्यवस्था पर दबाव बनाते रहेंगे।  आश्वासनों और अपराधों के बाद बीतता समय हमें शांत करता रहेगा।  फिर किसी अपराध पर हम उद्वेलित होएंगे , फिर क्रम दोहराएगा जाएगा।  बुराई और अपराध इसी तरह अस्तित्व में रहेंगे।  हम समाज में निश्चिंतता से जीवन कभी नहीं जी पायेगें।  यह सब चक्र उलटा चलाये रखने के कारण है।

क्या होता सीधा चक्र ? इतने सारे मनुष्य एक समाज में रहते हैं।  सामाजिक और लौकिक मर्यादा के विपरीत हमसे कभी कोई बुराई या अपराध हो जाता है।  हम स्वयं न्यायालय  के समक्ष प्रस्तुत होते हैं।  अपना अपराध स्वीकार करते हैं।  न्यायाधीश से अपना दंड सुनते हैं और दंड भुगत लेने के बाद फिर सार्वजनिक जीवन में आते हैं।  यह सीधा चक्र है , यही अपराध और सारी सामाजिक बुराइयों की रोकथाम भी है यही "आनंदमय जीवन और समाज की परिकल्पना" को साकार कर सकता है। ये नैतिकता बोध जिस दिन समाज में रहने वाला हर मनुष्य समझेगा तभी मानव सभ्य कहला पायेगा।

बहुत आदर्श समाज तो अबसे पहले भी कभी नहीं था , लेकिन कुछ अच्छाई पहले थीं जो मिटती चली गई हैं। जो कभी नहीं हुआ आज की हमारी पीढ़ी कर सकती है।  अगर हम नहीं कर सके तो कभी कोई और भी नहीं कर पायेगा।  हमने मनुष्य जन्म पाया है।  हम इस चुनौती को स्वीकार करें जो अभी तक नहीं किया गया हम सारे विश्व में मानव सभ्यता का वह कीर्तिमान रचे।  चक्र सीधा चलायें।  अपराध मुक्त करें समाज को. पहले कुछ त्याग करें फिर जीवन का आनंद उठाये।  और  मानव समाज को सभ्यता की ऊंचाई पर स्थापित करें।


अगर जीवन अंत आने पर भी मंजिल पर नहीं पहुँच सके तो भी खेद नहीं "समाज की दिशा सभ्यता की ओर मोड़ देंगे तो मंजिल पर हमारी संतानें पहुँचेगी " .

                             जीवन बलिदान किया किन्हीं औरों ने
                             मित्रों ,स्वतंत्रता में जीवन हम जीते हैं
                             बुनियाद रखें उत्कृष्ट नैतिकता की हम
                             हर्ष उल्लास होगा संतानों के जीवन में 

"वह सुख जो सभी को सुखी रखने के उपरान्त मिलता है उस चरम सुख की अनुभूति हम करें। "

--राजेश जैन
18-05-2014

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