Wednesday, February 7, 2018

बात सब करते - इंसानियत का पहरेदार कम ही होते हैं
वहशियत से वास्ता खुद पड़ता - तब इंसानियत न रही कह रोते हैं

अवसर होते हैं  , जिनसे लाभ मानवता के पक्ष में लिया जा सकता है
लेकिन दुखद कि - प्रतिष्ठा , प्रसिध्दि या लेखन(फेसबुक) से/के मिले अवसर - समाज में अश्लील , फूहड़ जुमलों के प्रसार कर व्यर्थ किये जा रहे हैं

आगे की नस्ल माफ़ नहीं करेगी - गर मौक़े हम गँवायेंगे
हैं इंसान पर फ़र्ज भूल हम - इंसानियत को ही दफ़नायेंगे

घर-परिवार बच्चों, के प्रति ज्यादा समर्पण रख,अपनी निजी तम्मनाओं को तजने की प्रवृत्ति-
नारी में पुरुष की अपेक्षा,ज्यादा पाई जाती है

न भेजो ग़ुलाब तुम - तुम तो गंभीर हो मोहब्बत में
ये चलन बढ़ाओगे तुम - तो दग़ा कई मासूम पायेंगे

गन्ना पिरोया तो - निकला रस हम ग्रहण करते हैं
सद विचार पिरोते मगर - सार रस ग्रहण न करते हैं



 

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