जो अच्छा तुम देखते मुझ में - वह मैं ख़ुद नहीं मेरा ख़ुदा है
जो बुरा देखने मिले समझना - मैं नहीं मुझमें शैतान छुपा है
मुझमें ख़ुदा हो सकता जब - तुम मेरी शैतानियत से न डरना
करना मोहब्बत मुझ से - मेरे शैतान को तुम ख़ुदा में बदलना
मुझ में ख़ुदा का न मिलना - माफ़ करना , तेरी कमी है दोस्त
ख़ुदा ने बक्शी नेमत ,मोहब्बत मगर तू ज़ुल्म मुझ पर करता है
नहीं थे , मंदिर ,मस्जिद चर्च तब - मासूम था इंसान
मज़हब बता बता अब - ख़ुदा का बंदा ख़ुदगर्ज हुआ है
मेरी हर शायरी में - तुम्हारी पहचान का बख़ान है मगर
और बात है कि - मेरी जुबां में लिखा तुम्हें पढ़ते नहीं बनता
यहाँ हर शायर - किसी से अपनी मोहब्बत लिखता है
मुझ में का शायर - इंसानियत से मोहब्बत लिखता है
अपनी मोहब्बत से हासिल खुशियाँ - चार दिन की होगी
इंसानियत से रख मोहब्बत तो - ये दुनिया जन्नत होगी
तेरे चलने-रुकने की यूँ तो - अहमियत कोई नहीं
तू चल मगर - कि तू इंसानियत लिए चलता है
तू जी कि - मेरे बाद भी तुझे जीना है
इंसानियत है तू - तेरी जरूरत हमेशा ही होगी
जो बुरा देखने मिले समझना - मैं नहीं मुझमें शैतान छुपा है
मुझमें ख़ुदा हो सकता जब - तुम मेरी शैतानियत से न डरना
करना मोहब्बत मुझ से - मेरे शैतान को तुम ख़ुदा में बदलना
मुझ में ख़ुदा का न मिलना - माफ़ करना , तेरी कमी है दोस्त
ख़ुदा ने बक्शी नेमत ,मोहब्बत मगर तू ज़ुल्म मुझ पर करता है
नहीं थे , मंदिर ,मस्जिद चर्च तब - मासूम था इंसान
मज़हब बता बता अब - ख़ुदा का बंदा ख़ुदगर्ज हुआ है
मेरी हर शायरी में - तुम्हारी पहचान का बख़ान है मगर
और बात है कि - मेरी जुबां में लिखा तुम्हें पढ़ते नहीं बनता
यहाँ हर शायर - किसी से अपनी मोहब्बत लिखता है
मुझ में का शायर - इंसानियत से मोहब्बत लिखता है
अपनी मोहब्बत से हासिल खुशियाँ - चार दिन की होगी
इंसानियत से रख मोहब्बत तो - ये दुनिया जन्नत होगी
तेरे चलने-रुकने की यूँ तो - अहमियत कोई नहीं
तू चल मगर - कि तू इंसानियत लिए चलता है
तू जी कि - मेरे बाद भी तुझे जीना है
इंसानियत है तू - तेरी जरूरत हमेशा ही होगी
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