Friday, February 9, 2018

काश , समझ समय रहते आती ...

काश , समझ समय रहते आती ...
सरल सादगी से जीवन यापन करने वाले - हमारे बाबूजी (मदनलाल जी जैन) से हमें आदर्श और सत्य पर चलने की प्रेरणा मिली। जिससे हमने (सभी भाई-बहनों ने) आज की बुराइयों से बहुत हद तक स्वयं को बचाये रखा। मैंने इंजीनियरिंग की शिक्षा उपरांत सर्विस ज्वाइन कर ली। वे व्यवसायी थे। इंजीनियरिंग की शिक्षा और सर्विस में देखा देखी से थोड़े , हम आडंबर से प्रभावित हुए। वे हर जगह - यह देखने , परखने आते कि मैं और (विवाह उपरांत परिवार सहित) - अच्छे वातावरण और अच्छे लोगों के बीच रहता हूँ या नहीं। उन्हें हमारी पसंदीदा सामग्रियों का भी मालूम था , वे हर बार हमारे (रचना और बच्चों के लिए) लाद के सब ले आते थे। वे किन बैग्स आदि में सब लाते , सादगी पसंद उन्हें इस बारे में कोई हीनता नहीं लगती , लेकिन आडंबर प्रभावित मै उनसे रुखाई से वह सब लाने से मना किया करता। खैर - उन्हें बुरा लगता या नहीं , हमें भान नहीं था। लेकिन वे जब भी आते उनका इस तरह लद के आने का क्रम बना रहा।
अब तीन वर्ष से अधिक हुए वे जीते नहीं रहे - अब उस तरह आने और पितृ स्नेह से सामान लाने वाले हमारे बाबूजी नहीं हैं। अपनी रुखाई या उनसे आर्गुमेंट के लिए मुझे स्वयं पर बड़ी खीझ होती है कि उनके पितृ प्रेम ,त्याग , उच्च आदर्श भावनाओं को मेरी आडंबर दुष्प्रभावित दृष्टि ने क्यों नहीं तब देखा। काश , मुझे यह समझ समय रहते आती - आज उनके नहीं होने पर सिवा पछ्तावों के क्या रहा है मेरे पास।
--राजेश जैन
10-02-2018

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