Saturday, February 17, 2018

रविवार से रविवार के चक्र में उलझ तेरा जीवन बीत जाता है
आज ठान वह करने की जिस हेतु ये मनुष्य जन्म तू पाता है

जिस्म के भीतर सबकी रूह एक सी है -
हमने पहचाना है
"प्रिय" इसलिए हमें - तुमसे मोहब्बत है

ज़िस्म से एकाकार हुई रूह को - बहुत कष्ट होता है
जब देखने वाला कोई इंसान - उससे नफ़रत करता है

जानते कि रूह से जुदा जिस्म को लोग दफ़ना देंगें
इसलिये ज़िस्म से नहीं रूह से हम मोहब्बत रखेंगें

धोखा है ताज़ - सुन मुमताज़महल
तेरी रूह से उसे मोहब्बत होती , जिस्म से नहीं - तो कई बेगमें वह नहीं रखता


दिल दुःखा तू ने क्या पाया
नारी लाचारी तू समझ न पाया

नहीं लड़ती किसी से - मतलब ये न समझना कि खुश है वह
नारी विरुध्द रिवाज़ों से लड़ने का - उसका साहस नहीं जुटता

हम भारतीय नैतिकता का महत्व भुला रहे हैं
तभी राजनीति में नैतिकता विहीन लोग आ रहे हैं

कह दीं जातीं पूरी बातें - चंद पँक्तियों में
जनाब
उन पँक्तियों को हम - शायरी कहते हैं

दिल जिस का तुम पर आएगा
वह जरूर खुशनसीब कहलाएगा

ईश्वर ज़माने को नई नज़र देदे
कि नारी वेदनाओं को देख सके

प्यार की पींगें चढ़ा - जो तुमसे छल ना करे
तुम्हारी प्रोन्नति में सहायक है - चुपके चुपके
सच्चा प्यार उसे ही है तुमसे

 

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