कहते हैं वह कुत्ता था
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बस दो घरों से उसे खाना मिलता था , एक घर से ठंड में बिछाने का कपड़ा और एक कपड़े से ओढ़ा दिया जाता था। मज़ाल की कोई अज़नबी इन घरों के तरफ मुहँ ही करले। उसके भोंकने से अज़नबी आतंकित होते थे। और जिसने भी उस पर एक भी बार पत्थर चला दिया , उसका गली में प्रवेश मुश्किल हो जाया करता था। अपने प्रतिरोध के कारण , उसने कई बार अपनी टाँगे भी तुड़वाई। एक बार निगम द्वारा पकड़वाया गया , बहुत दूर छुड़वा दिया गया किंतु पूरा शहर पार कर वह फिर अपने मालिकों के द्वार पर आ पुनः तैनात हो गया था। वह गली का कुत्ता था , किसी के घर के भीतर उसे पनाह नहीं थी। फिर भी इतना मुस्तैद कि पैर टूटने का दर्द और खतरों से बेफिक्र हर अजनबी की कठिन परीक्षा लेता था। क्या कोई चौकीदार वह गली के घरों की रखवाली/सुरक्षा देता जितना वह दे लेता था। पिछले कुछ दिनों में उसने कुछ लोगों को नोंच - काट दिया। अंततः त्रस्त लोगों ने उसे पकड़वाने का ठेका दे दिया। पकड़ने वालों ने उसे लाठियों से मार ही डाला। कुछ रोटी -भात और थोड़े से मिले प्यार में उसने अपने प्राण बेहद दुःखद तरह से गँवा दिए। कहते हैं वह कुत्ता था - आवारा ...
--राजेश जैन
03-02-2018
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बस दो घरों से उसे खाना मिलता था , एक घर से ठंड में बिछाने का कपड़ा और एक कपड़े से ओढ़ा दिया जाता था। मज़ाल की कोई अज़नबी इन घरों के तरफ मुहँ ही करले। उसके भोंकने से अज़नबी आतंकित होते थे। और जिसने भी उस पर एक भी बार पत्थर चला दिया , उसका गली में प्रवेश मुश्किल हो जाया करता था। अपने प्रतिरोध के कारण , उसने कई बार अपनी टाँगे भी तुड़वाई। एक बार निगम द्वारा पकड़वाया गया , बहुत दूर छुड़वा दिया गया किंतु पूरा शहर पार कर वह फिर अपने मालिकों के द्वार पर आ पुनः तैनात हो गया था। वह गली का कुत्ता था , किसी के घर के भीतर उसे पनाह नहीं थी। फिर भी इतना मुस्तैद कि पैर टूटने का दर्द और खतरों से बेफिक्र हर अजनबी की कठिन परीक्षा लेता था। क्या कोई चौकीदार वह गली के घरों की रखवाली/सुरक्षा देता जितना वह दे लेता था। पिछले कुछ दिनों में उसने कुछ लोगों को नोंच - काट दिया। अंततः त्रस्त लोगों ने उसे पकड़वाने का ठेका दे दिया। पकड़ने वालों ने उसे लाठियों से मार ही डाला। कुछ रोटी -भात और थोड़े से मिले प्यार में उसने अपने प्राण बेहद दुःखद तरह से गँवा दिए। कहते हैं वह कुत्ता था - आवारा ...
--राजेश जैन
03-02-2018
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