Monday, February 19, 2018



ये मुल्क़ - ये समाज - हमारा साझा है दोस्तों
ग़र बहकावों से बच बनाओगे इसको - साझा ख़ुशी जीने का मज़ा तुम उठाओगे दोस्तों

सुरक्षित होता ये मुल्क़ - सुरक्षित ही हम , तुम भी होते
फिजां में होती ग़र मोहब्बत - खुशियों से हम जीते होते

बात ग़र तहज़ीब से रखी जायेगी
बात ग़र चुभाने को न कही जायेगी
नफ़रत नहीं मोहब्बत होगी फ़िजा में
मुल्क़ की समस्या आधी रह जायेगी

इमरान का क़सूर क्या है दोस्तों
अमीर बूढ़ा भी हो तो - शादी को लालायित हसीना मिला करती हैं

अमावस से चाँद का भला - बिगड़ना क्या था
पूर्णिमा आने पर उसे - हसीं दिखना फिर था


तुम भी बनो चाँद कि - भले मुसीबत में घिर जाओ
हौंसलों से अपने सम्हलो - और फिर निखर जाओ

कैद हो परिंदा - अपनी खुशियाँ लुटाता है
मालिक की खुशियों का - रट्टा लगाता है

वो हमें - हमसे ज्यादा जानते हैं
जो ख़ुद अपने को - पहचानते हैं











 

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