Tuesday, September 30, 2014

वो अच्छा नहीं है .

वो अच्छा नहीं है .
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अच्छा , सबके लिए अलग -अलग हो सकता है। इसलिए जिसे अन्य अच्छा कहें /मानें वो आपके लिए भी अच्छा ही हो कदापि आवश्यक नहीं है।
लेकिन कुछ "अच्छा" ऐसे होते हैं जो अपवाद में सबके लिए ही निश्चित अच्छा होता है। सर्व मान्य "अच्छा" क्या हैं ?


बच्चा भी इसे अच्छा जानता है
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बच्चा 8-10 वर्ष का होता है ,वह अगर अपने पिता का, अन्य नारी से या माँ का ,अन्य पुरुष से  शारीरिक संबंध होना देखता है या ऐसी नीयत (आकर्षण) अनुभव करता है तो उसे अच्छा नहीं लगता। उसे अच्छा तभी लगता है जब उसके पिता और माँ इस विषय में परस्पर निष्ठावान हों।
इस उम्र का बच्चा (बेटी या बेटा) , भारतीय संस्कृति का जानकार नहीं होता तब भी आरम्भिक समझ में भी पति -पत्नी की आपसी निष्ठा को ही अच्छा मानता है।  मनुष्य परिवार में रहता है , इसके लिए यह अच्छा , प्राकृतिक अच्छा होता है।


कोई हमें ठगे ,यह हम अच्छा नहीं मानते
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व्यक्तिगत राय ली जाये तो सर्वमान्य राय यही होगी - "कोई हमें छले /ठगे ,यह हम अच्छा नहीं मानते हैं" । स्पष्ट है छला या ठगा जाना अच्छा नहीं होता।  अच्छा निच्छल या निष्कपट होना होता है।


हम दोषी हैं
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जिसे हम अच्छा नहीं जानते वह अच्छा हम नहीं करते हम दोषी तब नहीं हैं।  लेकिन जिसे हम अच्छा मानते हैं किन्तु वैसा अच्छा स्वयं नहीं निभाते हैं तब हम दोषी होते हैं।


वैवाहिक जीवन में माँ -पिता का एकनिष्ठ ना होना हमें पसंद नहीं था किन्तु हम अपने दाम्पत्य जीवन में विवाहेत्तर संबंधों के तरफ आकर्षित होते हैं या रखते हैं।  हम दोषी हैं समाज में यह बुराई हमसे है।
प्रेम का दिखावा कर कुछ समय शारीरिक सम्बन्ध बनाये फिर धोखा दे चला जाए , ऐसा छला /ठगा जाना हमें पसंद नहीं होता है। लेकिन चलन से दुष्प्रभावित हो यही छल दूसरों से करते हैं। पुनः हम दोषी हैं समाज में यह बुराई हमसे है।


अपनी बारी इन बुराई में योगदान हम करते हैं। समय परिवर्तन के साथ जीवन में इस बुराई का शिकार जब हमारा कोई अपना होता है तब वेदना होती है। तब इस बुराई के लिये समाज पर दोष रखते हैं, क्यों ?


हम उन्नति नहीं कर रहे हैं , पिछड़ रहे हैं
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विज्ञान और भौतिक वस्तुओं का ज्ञान और जीवन में उस पर निर्भरता आज बड़ी है। आज हम तुलनात्मक प्राचीन समाज के मनुष्य जीवन से ज्यादा सुविधाजनक परिस्थितियों में जीवन यापन कर रहे हैं। "और भी सुविधा"  अपने जीवन में सुनिश्चित करें इस हेतु विज्ञान और भौतिक संसाधनों के प्रति ज्ञान लालसा और चिंतन हम पर हावी हो गया है।इस कारण नैतिक और मानवीय संवेदना विषयक चिंतन हममें कम हो गया है। दूसरे शब्दों में भौतिक और वैज्ञानिक रूप से अति उन्नत होने के साथ आज हम नैतिक और मानवीय दृष्टि से प्राचीन समाज के मनुष्य से पिछड़ रहे हैं।


सुविधा और भोग साधनों के ज्यादा विकल्प ना होने से , प्राचीन समाज  का मनुष्य आज की तरह अति व्यस्त नहीं था। विज्ञान और आधुनिक ज्ञान पाठ्यक्रम के ना होने से उसका चिंतन धर्म और संस्कृति पर होता था। यही कारण था जिससे आज से पिछड़े कहे जाते हमारे मनुष्य पूर्वजों ने मानवीय मनोविज्ञान को समझा और हजारों वर्षों के अनुभवों से सर्वकालिक मानव हित के धर्म, संस्कृति और परम्परायें स्थापित कर एक भव्य समाज सृजित किया। जिसमें न्याय , त्याग ,दया और मानवता विध्यमान थी।


उन्नति सर्वदिशाओं में करें वह वास्तविक उन्नति है। भौतिक और विज्ञान के पंडित हो जायें।  लेकिन विरासत में मिली भव्य समाज रचना और संस्कृति को ध्वस्त कर मानवता में पिछड़ जायें तो इसे उन्नति नहीं कह सकेंगे।


जीवन - वो अच्छा नहीं है
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होने को तो आलीशान ,वातानुकूलित भव्य शयनरूम और नरम बिस्तर होंगे , लेकिन शैय्या पर साथ निष्ठावान साथी ना होगा .  काम -आवेश के पल तो शायद सुखद लगें। फिर ना तो नींद आये और ना साथ पड़े धोखेबाज साथी को सहा जाये। कैसा जीवन सुख , कैसी उन्नति और उपलब्धि हम पायेंगे ? जीवन - वो अच्छा नहीं है .


अत्याधुनिकता (ULTRA MODERNITY)
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लिव इन रिलेशन पर जायें यह आधुनिकता विनाशी है । विवाह टूटने के प्रमुख कारण  1. छल के अस्थायी शारीरिक सम्बन्ध   2. विवाहेत्तर संबंधों के सम्मोहन से मुक्त हों।  मनुष्य का परिवार में जीवन यापन ही श्रेष्ठ और परीक्षित विकल्प है।  इस संस्कृति को बचाने का दायित्व हम सभी निभायें। यह पुरातनता ही अति आधुनिकता होगी।


--राजेश जैन
30-09-2014













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