हम उसे अब ना सतायें
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स्वयं सता लिया अपने को , हम उसे अब ना सतायें
विरुध्द प्रदर्शन ना कर , हम उसको पुष्प भेंट करायें
विरुध्द प्रदर्शन ना कर , हम उसको पुष्प भेंट करायें
जन्मती है संतान को माँ , वध बेटी का माँ कर बैठी
अंक लगाये रखती थी बेटे को , माँ देखने को तरसती
दूध से बन खून दौड़ता था , दुधमुँही बेटी की रगो में
प्यारी अबोध मासूम का , खून अभागी वह कर बैठी
स्वयं सता लिया अपने को , हम उसे अब ना सतायें
विरुध्द प्रदर्शन ना कर , हम उसको पुष्प भेंट करायें
कारागृह में पड़ी अकेली ,हमदर्द कोई ना अब साथ है
अंतरंग का साथ मिलता ,सुखद सेज ना अब पास है
बना व्यंजन स्वादिष्ट , खिलाती और स्वयं खाती थी
बची ना चाहत खाने की , और ना अभागी को प्राप्त है
जीवन दुःस्वप्न कहे जाते , सारे के सारे एक साथ हैं
अबला भले न सह सके , कटु कठोर यथार्थ ही पास है
स्वयं सता लिया अपने को , हम उसे अब ना सतायें
विरुध्द प्रदर्शन ना कर , हम उसको पुष्प भेंट करायें
हाय विषैला वातावरण , बेटियाँ जिसमें झुलस रहीं
मिटायें जहर समाज से , बेटी ना जिसमे पनप रहीं
शोषण नारियों पर हो रहे , हिम्मत पालने की खो गई
न रही बेटियाँ सुरक्षित , जानिये मानव नस्ल खो गई
बेटी को मार दिया जिसने , बेटी वह भी किसी की है
उसको भी हम मारें यदि , दो बेटियों का यह क़त्ल है
स्वयं सता लिया अपने को , हम उसे अब ना सतायें
विरुध्द प्रदर्शन ना कर , हम उसको पुष्प भेंट करायें
--राजेश जैन
20-09-2014
एक माँ किसी विवशता में या मानसिक कमजोरी में अपनी बेटी को मार चुकी है। जबलपुर में आक्रोश उमड़ा है। उसके विरुध्द कैंडल मार्च निकाला गया है। उसके मुख पर कालिख पोती गई है। . बेटी को मार देने से वह कारगृह में है और अपने प्रिय बेटे से भी दूर हो गई है । दोनों संतान का विछोह ही उसे मिला है।अभागी ही कहलाएगी , कल तक गर्भ में रख और स्तनपान के जरिये अपनी बेटी के रगों में खून बढाती थी , उसका ही खून बहा बैठी है।
उसे कारागृह के कठोर तखत पर सोना पड़ रहा है। वह सुखद सेज जिस पर अपने प्रिय पति का अंतरंग साथ पाती थी अब वंचित है। घर में तरह तरह के व्यंजन बना वह चाव से परिजनों को भी खिलाती थी और स्वयं खा लेती थी। जेल में उसे अब उपलब्ध नहीं हैं , हो जायें तो खाने की चाहत नहीं बची है। जीवन में जिन परिस्थिति की कल्पनायें दुःस्वप्न लगते हैं । वे अभागी का कठोर कटु यथार्थ बन गए हैं।
हमारा सामाजिक परिवेश नारी (बेटी -बहन आदि ) के अस्तित्व लिये वैसे ही खतरनाक हो चुका है.बेटी -बहन पत्नी जिस तरह शोषित देखी जा रही हैं ,उससे कई परिवारों में बेटी को जन्मने पालने की हिम्मत नहीं रह गई है।सामाजिक इस जहरीले वातावरण ने नारी जो माँ होती है उसे भी कमजोर कर दिया है. ऐसे में जिस माँ ने अपनी बेटी को मारा है। उसकी लाचारी ,विवशता या मानसिक कमजोरी के लिये दोषी सामाजिक परिवेश और बुराइयों की ओर ध्यान दिए बिना यदि हम (या कानून ) उसे भी मार देते हैं तो एक साथ दो बेटी मारी जायेगीं। ( उस अभागन के , माँ -पिता सदमे में हैं उससे मिलना चाहते हैं अपनी बेटी को समझना /समझाना चाहते हैं पर कारागृह में मिलने से रोक लगी है।)
लेखक ने इस नारी की मानसिक ,शारीरिक वेदना और अब मिल रहे अपमान की स्थिति को समझा है ,उसका ह्रदय करुणा से भर कर कवि सा हो गया है और एक काव्य रचना कर रहा है। .... जिसमें स्वयं सतायी गई नारी (अबला ) के लिए सहानुभूति स्वरूप पुष्प भेजने और समाज सुधार का आव्हान सम्मिलित है )
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स्वयं सता लिया अपने को , हम उसे अब ना सतायें
विरुध्द प्रदर्शन ना कर , हम उसको पुष्प भेंट करायें "
विरुध्द प्रदर्शन ना कर , हम उसको पुष्प भेंट करायें "
-- राजेश जैन
20-09-2014
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