बेटी का अस्तित्व
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विचारणीय है , पत्नी चाहिये , तो बेटी का अस्तित्व अति आवश्यक है।
किसी की बेटी ही तो किसी की पत्नी बनती है , कोई अन्य तो नहीं।
हर परिवार में बेटी भी दुलार से पाली जाये और बड़ी हो , इसके लिये नारी को सम्मान से रखने की आवश्यकता है।
हमें अपने सामाजिक और धार्मिक रीति -परम्परा ,मान्यता और धारणाओं की पुर्नसमीक्षा और परिवर्तित करनी चाहिये , जिसमें जीवन की बहुत सी रस्मों के लिये नारी को वंचित रखा गया है.
चरित्र की जो स्वच्छता और दृढ़ता हम नारी से अपेक्षित रखते हैं , वही पुरुष अपने लिये भी निभाये. चरित्रवान पुरुषों के समाज में नारी सुरक्षित ,सुखी ,सम्मानीय और बराबरी पर होगी।
नारी को जब शोषण और कलंक की कोई चुनौती नहीं होगी तो बिना हिचक , बिना बाधा ,किसी भी समय किसी भी स्थान पर स्वतंत्रता से आ जा सकेगी। ऐसे सामाजिक परिवेश का निर्माण हम कर सकेंगे तब बेटी -बहन आदि हर परिवार में दुलार और गरिमा से पल्लवित होंगी।
इसके लिये विशेष तौर पर युवा और पुरुषों को विचार और आचरण परिवर्तित करने होंगे. अगर यह इस पीढ़ी द्वारा कर लिया गया तो आज की पाताल-उन्मुख मनुष्य सभ्यता की धारा और प्रवाह मोड़ने के लिए हमारी पीढ़ी इतिहास के पृष्ठों पर गौरवशाली स्थान पायेगी। अन्यथा समस्त भौतिक उन्नति के बाद भी नैतिकता ,न्याय और मानवीयता के अभाव के लिए कोसी जायेगी।
दायित्व हम पर है , निर्वहन का साहस करना होगा. कुछ त्याग करना होगा। और नियंत्रण अपनी समाज हानिकारक लालसाओं , आचरण और कर्मों पर करना होगा।
विचार करें हम मनुष्य हैं , बिना विचार किये तो पशु भी जन्मते और मर जाते हैं।
--राजेश जैन
21-09-2014
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विचारणीय है , पत्नी चाहिये , तो बेटी का अस्तित्व अति आवश्यक है।
किसी की बेटी ही तो किसी की पत्नी बनती है , कोई अन्य तो नहीं।
हर परिवार में बेटी भी दुलार से पाली जाये और बड़ी हो , इसके लिये नारी को सम्मान से रखने की आवश्यकता है।
हमें अपने सामाजिक और धार्मिक रीति -परम्परा ,मान्यता और धारणाओं की पुर्नसमीक्षा और परिवर्तित करनी चाहिये , जिसमें जीवन की बहुत सी रस्मों के लिये नारी को वंचित रखा गया है.
चरित्र की जो स्वच्छता और दृढ़ता हम नारी से अपेक्षित रखते हैं , वही पुरुष अपने लिये भी निभाये. चरित्रवान पुरुषों के समाज में नारी सुरक्षित ,सुखी ,सम्मानीय और बराबरी पर होगी।
नारी को जब शोषण और कलंक की कोई चुनौती नहीं होगी तो बिना हिचक , बिना बाधा ,किसी भी समय किसी भी स्थान पर स्वतंत्रता से आ जा सकेगी। ऐसे सामाजिक परिवेश का निर्माण हम कर सकेंगे तब बेटी -बहन आदि हर परिवार में दुलार और गरिमा से पल्लवित होंगी।
इसके लिये विशेष तौर पर युवा और पुरुषों को विचार और आचरण परिवर्तित करने होंगे. अगर यह इस पीढ़ी द्वारा कर लिया गया तो आज की पाताल-उन्मुख मनुष्य सभ्यता की धारा और प्रवाह मोड़ने के लिए हमारी पीढ़ी इतिहास के पृष्ठों पर गौरवशाली स्थान पायेगी। अन्यथा समस्त भौतिक उन्नति के बाद भी नैतिकता ,न्याय और मानवीयता के अभाव के लिए कोसी जायेगी।
दायित्व हम पर है , निर्वहन का साहस करना होगा. कुछ त्याग करना होगा। और नियंत्रण अपनी समाज हानिकारक लालसाओं , आचरण और कर्मों पर करना होगा।
विचार करें हम मनुष्य हैं , बिना विचार किये तो पशु भी जन्मते और मर जाते हैं।
--राजेश जैन
21-09-2014
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