Friday, September 26, 2014

अभिवादन

अभिवादन
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पाश्चात्य संस्कृति ने हमें प्रभावित किया . उसका हमारे समाज में निर्वाह होने लगा ।  अभिवादन करने की शैली हमारी बदल गई ।  एक हाथ उठा कर , सिर हिलाकर अभिवादन भारतियों ने भी करना अपना लिया।

अभिवादन करना तो कोई भी शैली हो अच्छा ही होता है।  लेकिन लेखक को लगा एक हाथ उठा कर या  सिर हिलाकर अभिवादन में उतनी विनम्रता नहीं झलकती जितनी , हमारी संस्कृति अनुसार दोनों हाथ जोड़कर अभिवादन में झलकती है।  अतः कॉलेज समय में सीखी एक हाथ उठा कर या  सिर हिलाकर अभिवादन के स्थान पर लेखक ने हाथ जोड़कर अभिवादन करना आरम्भ कर दिया।

आपको अच्छा लगेगा यह जानकर कि इस ढंग से अभिवादन करने से, जिसे अभिवादन किया गया होता था , धीरे -धीरे उन्होंने भी प्रत्युत्तर में हाथ जोड़ना आरम्भ कर दिया। 

अगर कोई उनसे बोलता कि आप हाथ जोड़कर अभिवादन किया करें तो शायद वे इसे ना मानते।  लेकिन हमारे हाथ जोड़ने से उन्होंने हाथ जोड़ने में कोई हिचक नहीं दिखाई।

हमारे या सभी के विनम्र होने से समस्याये और परस्पर टकराव घटते हैं।  इसलिये विनम्रता अनुकरणीय होती है।  हमारी संस्कृति हमें विनम्रता सिखलाती थी।  अगर हमें इसे जीवित रखना है। तब अपने व्यवहार ,आचरण और कर्मों में पहले इसे स्वयं लाना होगा। तब दूसरे भी संस्कृति अनुरूप आचरण करना आरम्भ कर सकते हैं। 

अन्यथा , भारतीय संस्कृति पर चलो , उसे अपनाओ , सलाह या आज्ञा देना उतना प्रभावकारी ना होगा। ये वाक्य दूसरों को दिये जाने वाले उपदेश मात्र बनकर रह जायेंगे।  एक दिन ऐसा भी आ सकता है,  जब कोई उपदेश देने वाले से पूछे , क्या है ,"भारतीय संस्कृति ? तो उपदेशक ही निरुत्तर रह जाए।

-- राजेश जैन

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