Wednesday, October 1, 2014

जग -भलाई के कार्य

जग -भलाई  के  कार्य
--------------------------
जिन्हें चर्चा मिलती है , वे भले कार्य करने को प्रोत्साहित होते हैं। कुछ चर्चित ऐसे व्यक्ति , भले कार्य और नारेबाजी से भले होने का दिखावा भी करते हैं। और चर्चा पाते रहते हैं।

प्रश्न भलाई के ढोंग या सत्यता पर नहीं है। किसी की परहित के प्रयासों पर शंका का भी नहीं है। प्रसंग और यह लेख "भलाई कैसे हो" ? इसका उत्तर लिखने का है।

जिन्हें चर्चा ना मिलती हो ऐसा (प्रत्येक) व्यक्ति भी जब स्वप्रेरणा या किसी सदाचारी से प्राप्त (या सदाचारी के द्वारा) मिली प्रेरणा से जग -भलाई  का कार्य को समर्पित होगा तब ही देश और समाज में भलाई की फसल लहलहाईगी। अन्यथा नारेबाजी और ऐसे पाखण्ड बिना भलाई की उपलब्धि के अतीत होते चले जायेंगे।

अनेकों क्षेत्र के लीडर तरह के एवं प्रभावशाली तरह के व्यक्ति, प्रचार तंत्र के लिए जिम्मेदार व्यक्तियों से  आपसी मिलीभगत(या बैर) से एक दूसरे की छवि और स्वार्थ निखारने और पुष्ट ( या बिगाड़ने) में लगे रहते हैं। इनका उद्देश्य अपवाद में कहीं जग -भलाई का हो , अन्यथा  अधिकाँश स्वहित के लिये ढंढार रचते हैं। चर्चाविहीन सामान्य व्यक्ति अब ऐसे पाखण्डों से प्रभावित नहीं हो पाता इसलिए भलाई के कार्य के आव्हान और नारेबाजी बिना प्रतिफल के खत्म हो जाते हैं।

आज आवश्यकता सामान्य व्यक्ति की इस उदासीनता को दूर करने की है। इसके लिए मीडिया को ऑनेस्ट होना पड़ेगा। मीडिया प्रभावशाली व्यक्तियों की सड़ी सड़ी बात की चर्चा की जगह , देश और समाज के गुमनाम से व्यक्तियों के निस्वार्थ और परहित के कार्यों को जिस दिन से खोज खोज कर प्रचारित करना (कवरेज देना ) आरम्भ कर देगा। उस दिन से सामान्य व्यक्तियों में परहित कार्यों के प्रति प्रेरणा और उत्साह का संचार हो सकेगा . तब ही सभी दिशाओं में भलाई की फसल लहलहाईगी और देश और समाज सुखी हो सकेगा।


नारेबाजी करते और परोपकार का दिखावा करते व्यक्ति अब यह रियलाइज कर लें कि आज की पीढ़ी के

सामान्य व्यक्ति की आँखे भी उस हाई रेसोलुशन /डेफिनेशन (HD) के कैमरे की तरह हो गई है जो किसी भी दृश्य की छोटी छोटी बात बारीकी (प्रिसिशन) से  उतार लेता है।  दिखावे के पीछे किसी के मंतव्य क्या हैं , उन मनोभावों को आज की आँखे पढ़ रही हैं। अब अंदर और ऊपर  की बातों में (कथनी और करनी में) सामंजस्य का अभाव ढोंगी को दूसरा अवसर या भूल सुधार का अवसर नहीं देता है।
इसलिये मिले अवसर (अपोर्चीन्यूटी ) को एकमात्र अवसर मान कर कार्य करना ही बुध्दिमानी और महानता होगी।

--राजेश जैन
02-10-2014

No comments:

Post a Comment