Tuesday, September 23, 2014

पुरुष पर ऋण

पुरुष पर ऋण
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जन्मता पुरुष रूप, गढ़ता बढ़ता वह
नारी ममता ,स्नेह दुलार की छाँव में

दादी ,नानी , माँ , मौसी और बुआ अपने अभावों और पारिवारिक संघर्षपूर्ण परिस्थितियों की चिंता किये बिना बालक को  अधिकतम वे वस्तुएं और भोज्य उपलब्ध कराने के प्रयास करती हैं , जो बालक को पसंद होती हैं।  इस प्रक्रिया में उनका ममत्व ,अपनत्व ,लाड और दुलार भी उसको भरपूर निरंतर मिलता है।

सुशोभित रक्षासूत्र कलाई पर उसकी
होता बहिन स्नेहाशीष प्रतीक रूप में

परिवार में छोटी या बड़ी बहिनों का स्नेह और आशीष भी उसके बढ़कर वयस्क होने के काल में,  उपरोक्त नारी से रिश्तों (और ममता और दुलार)  के साथ  सम्मिलित हो जाता है।

पत्नी का प्रेम अनूठा मिलता उसको
श्रृंगार लाज मान रक्षा अभिलाषा में 

सभ्य मनुष्य परिवार रूप में रहने का अभ्यासी हो गया था।  अवस्था और प्रकृति जनित उसकी (और नारी की भी ) आवश्यकता की पूर्ति एक बेहद ही गरिमापूर्ण पारिवारिक आवरणों और वातावरण में सामाजिक व्यवस्था उपलब्ध कराती थी /है।  अन्य परिवार की दुलारी कन्या , पुरुष की जीवन संगिनी बन मिल जाती थी /है।  उसका अनूठा प्यार , जो अन्य रिश्तों के प्रेम से अलग होता है।  पुरुष को आजीवन मिलने लगता था /है।

परिवार में जन्मी प्राण प्रिया बेटी तो
बस जाती भावी जीवन के पल पल में

मानव नस्ल के अस्तित्व को बनाये रखने के लिए , पति -पत्नी के अंतरंगता की परिणीति उनकी संतान की उत्पत्ति के रूप में होती है। संतान जब पुत्री  रूप में होती है तब पिता को वह अपने प्राणों से बढ़कर प्यारी होती है। बेटी अपने पिता के दुलार के बदले में आजीवन उनके सुख और स्वास्थ्य की कामनायें करती है।

उपरोक्त ही परिवेश में लगभग सभी पुरुषों का जीवन चक्र चलता है।  इसलिये सभी पुरुषों पर नारी से विभिन्न रिश्तों में मिलते ममता , लाड दुलार , प्यार और उसकी हितअभिलाषाओं का ऋण होता है।

इस ऋण को भूल जब पुरुष घर/परिवार से निकलता है और  अन्य परिवार की नारियों पर शोषण और अत्याचार का कृत्य करता है तब नारी का ऋणी यह पुरुष लेखक ह्रदय करुणा से भर जाता है।

उसे प्रत्येक पुरुष पर विभिन्न नारी रिश्तों के ऋण स्मरण आते हैं  , बचपन में आर्थिक रूप से समर्थ नहीं रहे नानी  , मौसी के परिवार  में भी किस तरह नानी मौसी द्वारा महँगे भोज्य और वस्त्र पहुँचने पर उसे दिये जाते हैं ?  कॉलेज अध्ययन को बाहर जाने पर दादी , क्या खाता होगा?  सोच सोच कैसे रोती रहती है । बुआ कैसे अपने बच्चों से बढ़कर भाई के बच्चों  ध्यान करती है ?  माँ , जीवन भर हमारे सुख सुनिश्चित हो , की चिंता में काया से कैसे क्रमशः क्षीण होती जाती है ?.  पत्नी , अपने को बदल कर पूरी तरह हमारी इक्छा अनुरूप कैसे ढल जाती है ?  बेटियाँ कैसे  इस बात का  हमेशा ध्यान रखतीं हैं ?  कि उनके किसी आचरण या कर्म से , पापा की और परिवार को कोई सामाजिक छवि दुष्प्रभावित ना हो।

तब वह समाज के ऐसे पुरुषों में वह दृष्टिकोण विकसित कर देना चाहता है , जिससे वे नारी ऋण उतारने को प्रेरित हों। जिससे देश और समाज की समस्त नारी जाति  को न्याय ,सम्मान ,गरिमा और सम्मान प्रदान कर सकें।

यह पेज "नारी चेतना और सम्मान रक्षा "  पुरुष और नारी को परस्पर विरुध्द और परस्पर आमने-सामने (बैरी रूप में ) प्रस्तुत नहीं करता है ।  पुरुष और नारी प्रत्येक परिवार के समतुल्य महत्त्व के सदस्य हैं।  सभी नारी और पुरुष परस्पर  सुखद साथ और आपसी विश्वास सुनिश्चित करें। यही लेखक का अभिप्राय होता है।  इस पेज का  प्रयोजन होता है। पुरुष साथियों को नारी प्रति न्याय बोध का आव्हान लेखक/पेज  करता है। 
तथा
जो नारी और  बहन - बेटियाँ ,   अभाव ,अशिक्षा और अनुभवहीनता के कारण शोषित होती हैं।  उनकी सहायतार्थ नारी द्वारा उन्होंने भुगती पुरुष जनित प्रतिकूलताओं,शोषण  अत्याचार के तौर -तरीके  के शिष्ट भाषा में वर्णन और उनसे बचाव के  नारी हेतु किये जाने उपायों के बारे में चेतना जागृत करने के लिए , प्रबुध्द नारियों को  रचना , सृजन और उसके प्रचार -संचार के लिये आमंत्रित करता है।


जन्मता पुरुष रूप, गढ़ता बढ़ता वह
नारी ममता ,स्नेह दुलार की छाँव में

सुशोभित रक्षासूत्र कलाई पर उसकी
होता बहिन स्नेहाशीष प्रतीक रूप में

पत्नी का प्रेम अनूठा मिलता उसको
श्रृंगार लाज मान रक्षा अभिलाषा में 

परिवार में जन्मी प्राण प्रिया बेटी तो
बस जाती भावी जीवन के पल पल में

--राजेश जैन
23-09-2014

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