Saturday, September 20, 2014

ज़माना दिखाता वही क्यों देखते हैं ……… (1)
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महानायक जो कहा जाता है , वर्षों हो गये एक कार्यक्रम पेश करता है।  एक घंटे तक लगभग करोड़ की संख्या में दर्शक उसे देखते रहते हैं।  उसमें कुछ प्रश्न जिनका समाज सुधार से , तार्किक चिंतन से देश की उन्नति से कोई सरोकार नहीं होता उसके उत्तर खोजने में , भारतीय युवाओं , बच्चों और कामकाजी , गृहकार्य में लगे सभी के प्रति प्रोग्राम सयुंक्त एक करोड़ घंटे ख़राब होते हैं। 

हम यह क्यों नहीं देख पाते ?
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1. सामान्य ज्ञान बढ़ाने की दृष्टि से भी देखा जाए तो एक घंटे में वह इससे कहीं अधिक बढ़ाया जा सकता है ,इस तरह से कोई उपयोगिता कार्यक्रम की नहीं कही जा सकती।
2.  हम अति व्यस्त हैं , घर परिवार के अनेकों कार्य लंबित होते हैं।  व्यस्तता में यह एक घंटा व्यर्थ कर अपने ऊपर लंबित कार्यों का मानसिक दबाव भी बढ़ा लेते हैं।
3. पूरी एक इंडस्ट्री है , जो कम मेहनत में ज्यादा धन और प्रतिष्ठा बटोरने के काम में तो लगी हुई साथ ही देश और समाज को गलत चलन देने में लगी है , जिससे युवा भटका है , गलत चीजों को प्राप्त करने की दौड़ में लगा है और कुंठित हो रहा है। देश और सामाजिक परिवेश बिगड़ता जा रहा है।
4. नारी को एक उपभोग की वस्तु की तरह दिखाया और देखे जाने से नारी गरिमा को बहुत ठेस लगी है।
5. जो महानायक कहलाता है उसका कतई यह धर्म नहीं होता कि वह पीढ़ियों को भ्रमित करे , देश के बेशकीमती करोड़ों -करोड़ों घंटे व्यर्थ करे।  महानायक अपनी प्रतिष्ठा और धन का लालची नहीं होता है।  महानायक वह होता है , जो अपना जीवन लगा कर देश और समाज को सच्चा पथ दिखलाता है , सद्कर्मों और सदाचार की प्रेरणा बनता है।

हमें ज्ञान और चक्षु दोनों मिले हैं। हम फैलाये सम्मोहनों से निकल कर , दिखलाये जाने वाली सामग्री के पीछे स्वयं , परिवार ,समाज ,देश और मानवता को हो रही क्षति को देखने की क्षमता विकसित करें।  तथाकथित इस महानायक के कर्म हल्कें हैं .
हम, अपने समाज के लिये बेहतर कर्म और सेवा से इस तथाकथित महानायक से बढ़कर महानायक बनें।  भले हमें कोई महानायक न कहे , क्योंकि महानायक तो क्या एक सच्चा छोटा नायक(हीरो) भी ,किसी निजी लालच से बेपरवाह या निरपेक्ष होता है।
समाज और देश को बुराइयों और समस्या से उबारने के लिए छोटे किन्तु सच्चे नायकों की आवश्यकता है। 

आओ - हम, हमारे समाज और देश की इस अपेक्षा की पूर्ति करें। सिर्फ अपने लिए  प्राप्त करने की प्रतिस्पर्धा (गुमराह) से बाहर आकर , परिवार ,समाज और देश को भी कुछ देना आरम्भ करें।

-- राजेश जैन
21-09-2014

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