Tuesday, September 2, 2014

करता मोहब्बत 'कोई' नहीं

करता मोहब्बत 'कोई' नहीं
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कवि सम्मेलन सुना करता था ,उसमें सुने एक गीत की पंक्तियों में से स्मरण रही निम्न पँक्ति जब तब विचार में आती है

"बच के निकल जा इस दुनिया से , करता मोहब्बत 'कोई' नहीं "

विद्वान कवि ने अपनी लेखनी और प्रस्तुति से , सभी को यथार्थ से आगाह किया है।

आज जब फिर पंक्तियाँ स्मरण आई तब एक विचार आया
...
इस कोई में हम स्वयं भी सम्मिलित होते हैं , जो किसी से आत्मिक प्रेम नहीं करता है। अगर हम ऐसे हैं तो हमारी सच्चे प्रेम की 'कोई' अपेक्षा हमें निश्चित ही निराश करेगी। तब हमें बाध्य होकर यही कहना होगा

बच के निकल जा इस दुनिया से , करता मोहब्बत 'कोई' नहीं ……

किन्तु अगर हम सच्ची प्रीत स्वयं करेंगे जो दैहिक अपेक्षा के ऊपर उठ आत्मिक स्तर तक पहुँचेगी , तब यह दुनिया हमें प्यारी लगने लगेगी , और दुनिया अच्छी हो जायेगी तब हम गुनगुना सकेंगे

"बच जा इस दुनिया में , करता हर कोई मोहब्बत यहाँ "

--राजेश जैन
02-09-2014

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