Thursday, September 25, 2014

उपलब्धि और गर्व

उपलब्धि और गर्व
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मार्ग में चलते हुये ऐसे स्थान  हैं जहाँ किसी प्रदूषण के कारण दुर्गन्ध होती है, आते -जाते हैं । वयस्क व्यक्ति तो , श्वाँस रोक कर उस दुर्गन्ध से बचता है। लेकिन बच्चे कुछ समय श्वाँस रोकने का अभ्यास नहीं रखते। वे दुर्गन्ध को भुगतते हैं। कई बच्चों को रुमाल नाक पर रखने की सीख होती है। वे दुर्गन्ध से इस तरह बच लेते हैं।
श्वाँस रोककर या रुमाल नाक पर रख , दुर्गन्ध से बचाव तभी संभव होता है , जब दुर्गन्धमय स्थान ज्यादा बड़ा नहीं होता. अगर यह विस्तृत है  तब इसके सिवा कोई उपाय नहीं रहता की दुर्गन्ध के कारक को ही समाप्त किया जाये।
वातावरण के प्रदूषण की तरह देश और समाज के प्रदूषण (बुराई )  भी हैं .  थोड़ी बुराई है तो उससे बचने के अपने -अपने ढंग से सब निबट लेते हैं। लेकिन बुराई की व्याप्तता अधिक हो तो उसके कारकों को ढूँढ/समझ  कर नष्ट करने की आवश्यकता होती है।
व्यापक हो गई बुराई को एक या कुछ के प्रयास से नष्ट करना कठिन होता है। उसे हमारे अथक और दीर्घ , सयुंक्त प्रयासों या असाधारण अच्छाई के पुँज किसी अवतार तरह के व्यक्ति द्वारा नष्ट किया सकता है।
हमारे समाज में भी ऐसी बुराई बढ़ रहीं हैं। उससे अपना अकेला बचाव करने में हमें असफलता मिलेगी।  वह इतनी बड़ी हो रही है कि हम सभी को चंगुल में रही है। सम्भावना कम है कि कोई अवतार अभी हमें  मिलेगा। 
अतः  हमें अपने और हमारे बच्चों के सुखद भविष्य/जीवन को सुनिश्चित करने के लिए समन्वित/सयुंक्त और गंभीर प्रयास करने चाहिये। अन्यथा जिस गति से बुराइयाँ बढ़ रहीं हैं वे जटिल से जटिलतम हो जायेंगी.जिनका निर्मूलन या उपचार असाध्य हो जाएगा।
आज हम समझ लें तो आगामी संततियों के प्रति दायित्व हम पूरे कर सकेंगे ।वे आज हमारे किये त्याग और उपलब्धि पर गर्व करेगी .  अन्यथा आगामी पीढ़ियाँ हमारी पीढ़ी पर रोयेंगी और उसे कोसेंगी ।

-- राजेश जैन 
25-09-2014

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