Monday, September 22, 2014

ज़माना दिखाता वही क्यों देखते हैं? ……… (2)

ज़माना दिखाता वही क्यों देखते हैं? ……… (2)
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एक फिल्म कलाकार ने देश की सामाजिक बुराइयों और समस्याओं पर कुछ अच्छे एपिसोड प्रस्तुत किये थे।  जनचेतना जागृत करने  प्रयास किया था। कुछ दबाव बुराई और समस्या उत्पन्न करने वालों और व्यवस्था पर बना था।  कुछ लोगों में सुधार भी आया होगा , शायद। पिछली सफलता के दृष्टिगत शायद और एपिसोड प्रदर्शित किये जाने की उनकी योजना लग रही है।  लेखक का प्रश्न है

क्या हम यह देख पायेगें उसमें ?
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1. उत्पन्न हुई अनेक सामाजिक बुराइयों की जड़ में , फिल्मों में हमारी संस्कृति विपरीत चित्रण और प्रदर्शन रहा है। जिसे देख देख कर हमारे समाज के चलन बदल गए।  क्या वो सफल फ़िल्मी अभिनेता , उसे बुराई रूप में दिखलाने  साहस करता है ?
2. फिल्म इंडस्ट्रीज की चकाचौंध से प्रभावित हो देश के विभिन्न हिस्सों से अनेकों बहन -बेटियों ने खतरों से अनजान होकर घर से पलायन किया। वे फिल्मों में कोई जगह नहीं बना सकीं।  फिल्म इंडस्ट्रीज के गलियारों  में सक्रिय तत्वों और स्वयं फ़िल्मी हस्तियों ने तरह तरह उनका शोषण किया , और फिर उन्हें इस योग्य भी ना छोड़ा कि वापिस अपने घर-परिवार और शहर /गाँव में अपना मुख दिखाने का साहस कर सकें। उनका जीवन कैसे नर्क बना और किन्होंने और कैसे किया। ऐसी शोषित हुई नारियों ने अपना जीवन और परिवार का नाम कलंकित किया। जबकि शोषण में लिप्त  फ़िल्मी लोग धनी बने  प्रतिष्ठित ही  रहे। इस पर कोई एपिसोड लाया जाएगा उनके द्वारा ?
3. अगर नहीं , तो अभिनेता वास्तविक समाज हित नहीं करेगा , उसका मात्र अभिनय  करेगा।  दूसरे में बुराई देख लेना , उसे कह लेना और दिखला देना यह तो साधारण ही बात होती है।  अपने स्वयं में बुराई देख लेना ,स्वीकार करना और दिखलाने का साहस बिरले महान ही करते हैं।  जैसी महान छवि बनाने की अभिनेता की अभिलाषा है , अगर इस पर एपिसोड नहीं आता है तब वह साधारण ही है।
4. तब हमें व्यर्थ जाता अपना 'समय' देखना और उसे बचा लेना चाहिए। क्योंकि ऐसे व्यक्ति द्वारा दिए गए उपदेश कभी प्रभावी नहीं होते , जो उपदेशों के अनुरूप स्वयं के आचरण और कर्मों में अच्छाई नहीं ला पाता है।

--राजेश जैन
22-09-2014

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