अनमैरिड प्रोफेशनल्स
---------------------------
स्पेशली वे जो मेट्रोस में भविष्य बनाने और धन कमाने , घर से दूर रहने जा रहे हैं। चाहे वे बेटे हों या बेटियाँ हों , हमारे जैसे किसी परिवार के। स्वयं उनकी तथा उनसे माँ -पिता उनके भाई -बहनों और परिजनों की कल्पना /अपेक्षा उनके सुखद ,प्रतिष्ठित और दूसरों के लिये अनुकरणीय तरह के व्यक्तित्व निर्माण की होती है।
घर से दूर जा रहा बेटा और बेटी , अपने माँ -पिता ,भाई -बहनों और परिजनों की चिंताओं को दूर करने के लिये उन्हें हर तरह से आश्वस्त करता है। परिजनों को उसमें शंका होती है , तब भी वे बेटे-बेटी के आश्वासनों पर विश्वास करते हैं।
उनकी शंका अपने बेटे-बेटी की किसी कमी या खराबी के कारण नहीं होती (ऐसे कमी वाले बेटे-बेटी तो बाहर भेजे जाने की योग्यता ही प्राप्त नहीं कर पाते ). उनकी शंका क्यों होती है ,कि बेटे-बेटी से ऐसी गलतियां ना हो जायें ? जिस के कारण विशिष्ट रही उनमें योग्यता के बाद भी उनका भविष्य और जीवन समस्याग्रस्त हो जाये। उत्तर, इस प्रश्न का पढ़ने वाले सभी जान रहें हैं।
माँ -पिता को बाहर के (मेट्रोस) के ख़राब चलन के कारण ये शंका होती है , इस ख़राब चलनों में उनका पाल्य परिवार के मार्गदर्शन और देखरेख से भी दूर रहता है , इसलिये उनकी आशंकायें बढ़ती हैं। ख़राब चलन तो अनेकों हैं। दुष्प्रभावित अगर हो गए तो वो युवाओं का भविष्य , असाधारण उनमें प्रतिभा के होते हुए भी , बेहद साधारण से बुरा बना छोड़ सकता है।
बहुत से ग्रामीण माता -पिताओं को तो ख़राब चलन होते हैं , इतना ही मालूम होता है , लेकिन वे किस हद तक ख़राब हैं उनकी कल्पना भी उन्हें नहीं होती। लेकिन प्रतिभावान अपने बेटे-बेटी के भविष्य की चिंता में और पढाई पर किये सामर्थ्य से अधिक व्यय का प्रतिफल बच्चों के जीवन में प्राप्ति के लिये वे खतरा उठाते हैं।
सभी युवा तो निश्चित ही भटकावे में नहीं पड़ते। उन्हें माँ-पिता अपेक्षा और अपने भले -बुरे का ज्ञान संस्कारों से मिला होता है। वे , आत्म -नियंत्रण से आसपास फैली अनेकों बुराइयों से अपना बचाव कर लेते हैं। अपनी प्रतिभाओं अनुरूप अपना जीवन ऐसा बनाते हैं जो ना सिर्फ परिवार अपितु समाज और राष्ट्र के लिए उपलब्धि होता है। उनका जीवन अनुकरणीय होता है , जिसका अनुकरण कर दूसरे भी अपना हित करते हैं।
लेकिन कुछ युवा भटकावों और बुरे चलन की चपेट में आ जाते हैं। क्या हैं भटकावों के लिए मुख्य जिम्मेदार खराबियाँ जो मेट्रोस में सरलता से मिलती हैं? अनेकों है लेख में सभी की चर्चा लेख को बोरिंग कर सकता है। एक प्रमुख का उल्लेख ही कर रहा हूँ।
युवा बेटे और बेटियाँ जब जॉब के लिये बाहर जाते हैं तब रहने के लिए , पुरुष -पुरुष (बेटे ) अलग और नारी (बेटियाँ) अलग रेंटल फ्लैट शेयर करते हैं। मल्टी-नेशनल कंपनी'यों में वीक एंड दो दिनों का होता है। इन दिनों दो रातों में कुछ पुरुष , नारी वाले फ्लैटों में पहुँचते हैं या मित्रता के बहाने नारियों को अपने फ्लैट में डिनर को निमंत्रित करते हैं।
मौज मस्ती के नाम पर गेम्स , अच्छे स्वादिष्ट भोज्य तो वहाँ होते ही हैं , ड्रिंक्स और अश्लील वीडियो का भी प्रबंध वहाँ कर लिया जाता है। जिन बेटे -बेटियों को ऐतराज होता है , उन्हें भी तानों और आधुनिकता और मौज मजे के नाम पर राजी कर लिया जाता है। रात्रि , ड्रिंक्स और अश्लील वीडियो के दुष्-प्रभाव में वे अपने पर पारिवारिक -नैतिक और सामाजिक दायित्वों को भुलाते हैं , रात्रि में साथ रहते हैं। प्रारम्भ में अगली सुबह अपनी रात में की करतूतों का पछतावा भी करते हैं। फिर अभ्यस्त होने पर वह भी छोड़ते हैं।
भविष्य और जीवन पर इस स्वछंदता की बुरी परछाई क्या होती है , जो समस्या बनती है और सुख और प्रतिष्ठा का हरण करती है ?
भारतीय पुरुष (पति) परम्परा से पसेसिव स्वभाव का होता है ,अपनी पत्नी के प्रेम और सुंदरता पर एकाधिकार पसंद होता है। ऐसे में भले ही दुष्प्रेरित कर उसने अनेकों युवतियों का दैहिक शोषण किया हो , उसे अपनी पत्नी पर इसी तरह की कुशंकायें सताती हैं , जहाँ पत्नी की कमाई तो चाहता है , किन्तु पत्नी के कार्यालीन साथी पुरुष से व्यवहार पर रुष्ट रहता है। ये शंका उसे इसलिये रहती है कुछ नारियों के चरित्र बिगाड़ को प्रत्यक्ष उसने देखा / उसका स्वयं कारण रहा होता है। इस बुरे कर्म की छाया और भारतीय पुरुष पारम्परिक मानसिकता उसके दाम्पत्य जीवन का सुख चुरा लेती है। वैवाहिक सम्बन्ध भी आजीवन नहीं चल पाते हैं। और बच्चे माँ-पिता की संयुक्त छाया से वंचित होते हैं।
क्या Do's और डोंट's होने चाहिये
Do's
-------
घर से आते माँ -पिता को दिये आश्वासनों अनुसार जिम्मेदार व्यवहार ,आचरण और कर्म
Dont,s
---------
रात्रि पार्टी , ड्रिंक्स (दोनों ही विशेषकर नारी ) , अश्लील वीडियो
--राजेश जैन
28-09-2014
---------------------------
स्पेशली वे जो मेट्रोस में भविष्य बनाने और धन कमाने , घर से दूर रहने जा रहे हैं। चाहे वे बेटे हों या बेटियाँ हों , हमारे जैसे किसी परिवार के। स्वयं उनकी तथा उनसे माँ -पिता उनके भाई -बहनों और परिजनों की कल्पना /अपेक्षा उनके सुखद ,प्रतिष्ठित और दूसरों के लिये अनुकरणीय तरह के व्यक्तित्व निर्माण की होती है।
घर से दूर जा रहा बेटा और बेटी , अपने माँ -पिता ,भाई -बहनों और परिजनों की चिंताओं को दूर करने के लिये उन्हें हर तरह से आश्वस्त करता है। परिजनों को उसमें शंका होती है , तब भी वे बेटे-बेटी के आश्वासनों पर विश्वास करते हैं।
उनकी शंका अपने बेटे-बेटी की किसी कमी या खराबी के कारण नहीं होती (ऐसे कमी वाले बेटे-बेटी तो बाहर भेजे जाने की योग्यता ही प्राप्त नहीं कर पाते ). उनकी शंका क्यों होती है ,कि बेटे-बेटी से ऐसी गलतियां ना हो जायें ? जिस के कारण विशिष्ट रही उनमें योग्यता के बाद भी उनका भविष्य और जीवन समस्याग्रस्त हो जाये। उत्तर, इस प्रश्न का पढ़ने वाले सभी जान रहें हैं।
माँ -पिता को बाहर के (मेट्रोस) के ख़राब चलन के कारण ये शंका होती है , इस ख़राब चलनों में उनका पाल्य परिवार के मार्गदर्शन और देखरेख से भी दूर रहता है , इसलिये उनकी आशंकायें बढ़ती हैं। ख़राब चलन तो अनेकों हैं। दुष्प्रभावित अगर हो गए तो वो युवाओं का भविष्य , असाधारण उनमें प्रतिभा के होते हुए भी , बेहद साधारण से बुरा बना छोड़ सकता है।
बहुत से ग्रामीण माता -पिताओं को तो ख़राब चलन होते हैं , इतना ही मालूम होता है , लेकिन वे किस हद तक ख़राब हैं उनकी कल्पना भी उन्हें नहीं होती। लेकिन प्रतिभावान अपने बेटे-बेटी के भविष्य की चिंता में और पढाई पर किये सामर्थ्य से अधिक व्यय का प्रतिफल बच्चों के जीवन में प्राप्ति के लिये वे खतरा उठाते हैं।
सभी युवा तो निश्चित ही भटकावे में नहीं पड़ते। उन्हें माँ-पिता अपेक्षा और अपने भले -बुरे का ज्ञान संस्कारों से मिला होता है। वे , आत्म -नियंत्रण से आसपास फैली अनेकों बुराइयों से अपना बचाव कर लेते हैं। अपनी प्रतिभाओं अनुरूप अपना जीवन ऐसा बनाते हैं जो ना सिर्फ परिवार अपितु समाज और राष्ट्र के लिए उपलब्धि होता है। उनका जीवन अनुकरणीय होता है , जिसका अनुकरण कर दूसरे भी अपना हित करते हैं।
लेकिन कुछ युवा भटकावों और बुरे चलन की चपेट में आ जाते हैं। क्या हैं भटकावों के लिए मुख्य जिम्मेदार खराबियाँ जो मेट्रोस में सरलता से मिलती हैं? अनेकों है लेख में सभी की चर्चा लेख को बोरिंग कर सकता है। एक प्रमुख का उल्लेख ही कर रहा हूँ।
युवा बेटे और बेटियाँ जब जॉब के लिये बाहर जाते हैं तब रहने के लिए , पुरुष -पुरुष (बेटे ) अलग और नारी (बेटियाँ) अलग रेंटल फ्लैट शेयर करते हैं। मल्टी-नेशनल कंपनी'यों में वीक एंड दो दिनों का होता है। इन दिनों दो रातों में कुछ पुरुष , नारी वाले फ्लैटों में पहुँचते हैं या मित्रता के बहाने नारियों को अपने फ्लैट में डिनर को निमंत्रित करते हैं।
मौज मस्ती के नाम पर गेम्स , अच्छे स्वादिष्ट भोज्य तो वहाँ होते ही हैं , ड्रिंक्स और अश्लील वीडियो का भी प्रबंध वहाँ कर लिया जाता है। जिन बेटे -बेटियों को ऐतराज होता है , उन्हें भी तानों और आधुनिकता और मौज मजे के नाम पर राजी कर लिया जाता है। रात्रि , ड्रिंक्स और अश्लील वीडियो के दुष्-प्रभाव में वे अपने पर पारिवारिक -नैतिक और सामाजिक दायित्वों को भुलाते हैं , रात्रि में साथ रहते हैं। प्रारम्भ में अगली सुबह अपनी रात में की करतूतों का पछतावा भी करते हैं। फिर अभ्यस्त होने पर वह भी छोड़ते हैं।
भविष्य और जीवन पर इस स्वछंदता की बुरी परछाई क्या होती है , जो समस्या बनती है और सुख और प्रतिष्ठा का हरण करती है ?
भारतीय पुरुष (पति) परम्परा से पसेसिव स्वभाव का होता है ,अपनी पत्नी के प्रेम और सुंदरता पर एकाधिकार पसंद होता है। ऐसे में भले ही दुष्प्रेरित कर उसने अनेकों युवतियों का दैहिक शोषण किया हो , उसे अपनी पत्नी पर इसी तरह की कुशंकायें सताती हैं , जहाँ पत्नी की कमाई तो चाहता है , किन्तु पत्नी के कार्यालीन साथी पुरुष से व्यवहार पर रुष्ट रहता है। ये शंका उसे इसलिये रहती है कुछ नारियों के चरित्र बिगाड़ को प्रत्यक्ष उसने देखा / उसका स्वयं कारण रहा होता है। इस बुरे कर्म की छाया और भारतीय पुरुष पारम्परिक मानसिकता उसके दाम्पत्य जीवन का सुख चुरा लेती है। वैवाहिक सम्बन्ध भी आजीवन नहीं चल पाते हैं। और बच्चे माँ-पिता की संयुक्त छाया से वंचित होते हैं।
क्या Do's और डोंट's होने चाहिये
Do's
-------
घर से आते माँ -पिता को दिये आश्वासनों अनुसार जिम्मेदार व्यवहार ,आचरण और कर्म
Dont,s
---------
रात्रि पार्टी , ड्रिंक्स (दोनों ही विशेषकर नारी ) , अश्लील वीडियो
--राजेश जैन
28-09-2014
No comments:
Post a Comment