Thursday, September 25, 2014

ज़माना दिखाता वही क्यों देखते हैं? ……… (3)

ज़माना दिखाता वही क्यों देखते हैं? ……… (3)
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प्यार
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प्यार की अनुभूति मधुरतम होती है. प्यार की महिमा इतनी होती है कि प्यार शब्द ही मिश्री की मिठास का बोध कराता है। जिनसे  प्यार हमें होता है उनसे हमारे बैर ,ईर्षा , प्रतिद्वंदिता ,कटुता और ह्रदय से दूरियाँ स्वतः समाप्त होती हैं।  जिनसे हम प्यार करते हैं , उनकी प्रसन्नता , प्रगति और सुरक्षा हमारी निजी प्रसन्नता का कारण बनता है। आज प्यार की बातें सबसे ज्यादा होती हैं।

बेटी से पिता का और पिता से बेटी का प्यार बहुत अनूठा कहा जा रहा है।  वर्ष में एक दिन "फादर्स डे" की परम्परा आरम्भ हो गई है।  सबसे ज्यादा बेटी  "फादर्स डे" पर अपने पापा से सम्मान और प्यार प्रदर्शित करती हैं।
माँ से पुत्र का पुत्र से माँ का प्यार तो अत्यंत प्रगाढ़ होता है।   वर्ष में एक दिन "मदर्स डे"  भी बडे उत्साह से मनाया जाता है , पुत्री और पुत्र दोनों ही इस दिन सम्मान और प्रेम से माँ को उपहार  और शुभकामनायें देते हैं।
युवाओं में विपरीत लिंगी के प्रति आकर्षण और प्यार भी आज अत्यंत उत्साह और मनलुभावन ढंग से प्रदर्शित किया जाता है।  "वेलेंटाइन डे " आज लगता है युवाओं को वर्ष में सबसे ज्यादा प्रिय दिन लगता है। इस दिन बढ़चढ़ कर प्रेम दिखाने की होड़ उनमें होती है।
मित्रो में प्रेम प्रदर्शित करने के लिए आजकल वर्ष में एक दिन 'फ्रेंड'स डे' भी मनाया जा रहा है।
इन बातों से कहा जा सकता है कि आज प्रेम की गंगा  पूरी दुनिया में बह रही है।
प्रेम प्रदर्शन में हम यह नहीं देख पाते हैं ?
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इतना प्यार यदि परस्पर सबमे होता तो क्यों आज बैर ,ईर्षा , प्रतिद्वंदिता ,कटुता और ह्रदय से दूरियाँ इतनी होती ? प्यार का अस्तित्व तो इन्हें ख़त्म करता है।
क्यों , युवतियाँ और बच्चियाँ प्यार नाम से छली जा रही हैं ? जो प्रेमी बन उन्हें मिलता है क्यों कुछ समय में उनका जान का दुश्मन बनता है ? क्यों उनसे छुटकारा चाहता है। 
प्यार , बेटी के प्रति इतना सच्चा होता तो , क्यों पिता अपने घर आँगन में बेटी नहीं देखना चाहता है ? बल्कि मालूम पड़ जाये कि गर्भ में शिशु -कन्या है तो उसको नष्ट करवाने की कोशिश करता है।
बेटी , जो पापा से अगाध प्यार रखती है क्यों उनके मार्गदर्शन में ना चलकर , छलियों के फुसलावे में आकर अपनी और पिता-परिवार का जीवन नरक बनाती है ?
प्यार बेटे का माँ के प्रति प्रगाढ़ था तो क्यों स्वयं का परिवार होने के बाद , माँ का यथोचित सम्मान और उनकी देखभाल नहीं कर पाता है ?
क्यों युवक प्यार नाम से धोखा देकर प्रेमिका को छलते हैं ? क्यों पुरुष दूसरे परिवार की नारी पर शोषण -दुराचार और उनकी हत्या कर अपनी जननी (माँ ) को अपमानित करते हैं?  जो ऐसे बेटे की माँ होने से निपूती रहना बेटे के अत्याचार से दुखी हो सोचने को बाध्य होती है।
पति -पत्नी के बीच इतना अनुराग होता है तो क्यों वे एक दूसरे के पेरेंट्स के प्रति उनके दायित्व निर्वहन में बाधक बनते हैं ?
जब मित्र-प्रेम विशाल है तो। क्यों मित्रों में आपसी प्रतिस्पर्धा और ईर्ष्या है कि मित्र की उन्नति इतनी खटकती है ?

इतना प्यार जितना दिखाया जा रहा है का कुछ अंश भी सच्चा होता तो समाज में छल -ईर्ष्या और द्वेष का अस्तित्व ना होता।  एक दूसरे की प्रगति से हम खुश होते और हमें दूसरे की सुरक्षा अपने से बढ़ कर प्यारी होती।

हम करें तो किसी से सच्चा प्यार करें और नही तो प्यार शब्द के झूठे प्रयोग से किसी को छल कर प्यार नाम की पावन भावना को कलंकित ना करें।

--राजेश जैन  
26-09-2014

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