Sunday, July 28, 2013

चंचल मन

चंचल मन
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चंचल मन पर ना रख सकें काबू जब 
जीवन तमाशा बन जाता है 
मिल जाए फिर कुछ भी हमें तो  
जो भले रही थी वर्षों कामना पाने की 
कुछ दिन में हम उससे उब जाते हैं  

मन के इस स्वभाव को समझ कर 
मन को इतना ना समझा सकें कि 
ना हो आतुर नई नई कामना पाने को 
मिलेगी हम फिर उब जायेंगे उस नई से 
अगर वह वस्तु तो इतना बुरा होगा हमसे 
नई नई अनेकों जल्दी जल्दी जो बदलेंगे 
हमें लगेंगे बहुत अधिक रुपये पैसे 
जुटाने जिसे अनैतिक हमें होना होगा 

लेकिन जिसे बदले वह नहीं कोई वस्तु 
वह यदि है हमारा कोई मनुष्य साथी तो 
चंचल मन के कारण उबने की आदत से 
छल उससे कर आहत ह्रदय को कर देते हैं 

ऐसे चंचलमना बढ़ते यदि जायें तो 
बहुत तो होंगे चंचलमना और 
साथ ही बढ़ेंगे आहत ह्रदय मनुष्य भी 
चंचलमना इक मानसिक रोगी 
और आहत ह्रदय एक दुखी व्यक्ति है 
जिस समाज में बहु मानसिक व्याधि 
और बहुत हैं ऐसे दुखी मनुष्य तो 
वह समाज नहीं सुखी बन सकता है 
और मानवता वहाँ अस्तित्वहीन होती है

इस विवरण से यदि सहमत हम तो 
तो चंचल अपने मन पर रखें नियंत्रण 
जिससे रुकेगी अनैतिकता और 
छल कपट निर्मूलन हो सकेगा 
समाज हित इससे होगा सुनिश्चित 
और मानवता अनवरत प्रवाहमय रहेगी 

--राजेश जैन 
28-07-2013

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