Monday, July 15, 2013

सुविधा प्रधान जीवन शैली

सुविधा प्रधान जीवन शैली
-----------------------------
 
क्रिकेट के खेल के उदहारण से बात आरम्भ करता हूँ . जो बल्लेबाज गेंद को बल्ले पर आने के पूर्व ही समझता है और अपने स्ट्रोक को नियंत्रित और नियोजित करता है . वह शतक और फिर शतकों का शतक भी लगा पाता है . स्पष्ट है किसी बात को समस्या बनने से पहले या पानी सिर से ऊपर पहुँचने के पूर्व यदि समझ लिया जाए तो हम आनंद से नियंत्रित और नियोजित सफल  जीवन जी सकते हैं . और अपना देश अपना समाज अच्छा बना सकते हैं .

भारतीय संस्कृति , प्राचीन काल से ही विकसित रही है . भव्य भारतीय मानव सभ्यता , हमारी परम्परायें मानवता और समाज हित की दृष्टि से सर्वकालिक प्रमाणित और अनुकरणीय रही हैं . ये मनुष्य के आचार और व्यवहार में इस तरह संतुलन की हिमायत करती हैं जो ना केवल मनुष्य के स्वयं के हित में होता है ,बल्कि परिवार , देश समाज और सम्पूर्ण मानवता के लिए हितकारी होता है .

विकसित देशों की व्यवस्था वहाँ की सुविधा जनक जीवन शैली हमें आकर्षित करती हैं . दूर से किसी को भी वह आकर्षक लगेगी सहज है . लेकिन अभाव के बीच और अव्यवस्थाओं में जिस तरह हम अस्तित्व और स्वाभिमान बचा सकते हैं वे नहीं बचा सकते .
क्योंकि हमारे पीछे समृध्दता (आर्थिक नहीं मानसिकता ) का जो इतिहास रहा है जो संस्कार रहे हैं वे हमें समस्याओं में भी सहिष्णु रखते हैं . उपभोग हमारे जीवन शैली में भी महत्वपूर्ण स्थान रखता है किन्तु उतना जितना न्याय ,नैतिकता और स्वास्थ्य की दृष्टि से आवश्यक है . भारतीय मनुष्य जीवन में उपभोग का इस तरह महत्व है तो अन्य जीवन सिध्दांत भी हैं जिनसे मनुष्यता सार्थक होती है . वे अन्य जीवन सिध्दांत हैं परस्पर विश्वास , भाईचारा , संवेदनशीलता और समय आने पर त्याग . धन वैभव तो छोटी बात है प्राण तक हँसते हुए त्याग दिए जाते हैं .

दूसरी संस्कृति में भी ये बात हो सकती हैं . लेकिन जिस बात को प्रमुख कर हमारी अब की पीढियाँ पाश्चात्य देशों के तरफ आकर्षित हो रही हैं वह है उपभोग प्रचुरता . जी हाँ वहाँ की आर्थिक सम्पन्नता और सुविधायें किसी की भी उपभोग लालसा की पूर्ती सरलता से कर सकती हैं . हम लालसा के वशीभूत उपभोग प्रधान जीवन के दूसरे कष्टों को अनदेखा करते हैं .

जीवन में एक समय उस तरह की जीवन शैली के लिए अन्याय ,अनैतिकता का आश्रय लेते हैं . इस सब के बाद जुटायी सुविधा और उपभोगों से संतुष्ट नहीं हो पाते . तब भारतीय जीवन शैली के महत्व को मानते हैं . लेकिन पुरानी अपनी  खराबियों और संकोच के कारण समझने के उपरान्त भी उस पर पूरी तरह वापिस नहीं आ पाते हैं . तब पछतावे में रहने को बाध्य होते हैं .

गेंद को बल्ले पर आने पर समझने से जिस तरह बल्लेबाज गलती कर सकता है वैसा ही जीवन में चीज समस्या बने तब समझी जायेगी तो गलती होने के संभावनाएं होती हैं .

अत्यधिक उपभोग महत्वाकांक्षाओं में व्यस्त होने से बचकर अगर जीवन के कुछ प्रारम्भिक वर्षों में भारतीय जीवन शैली के महत्व को यदि हम समझ लें तो सफलताओं के शतक तो बनायेंगे ही . अपने समाज को संस्कृति अनुरूप सभ्य मानव समाज रूप में विकसित करते हुए अपने देश को ऐसा बनायेंगे . जिसमें बाहरी लोग आने को लालायित होंगे .. हम विदेश जाने को नहीं .
 
--राजेश जैन
16-07-2013

No comments:

Post a Comment