Wednesday, July 3, 2013

गुरु भूमिका - आज का परिवेश

गुरु भूमिका - आज का परिवेश
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शिक्षक ,गुरु या आज ज्यादा प्रचलित संबोधन टीचर ,लेक्चरर ,प्रोफेसर  उनके शिष्य (स्टूडेंट) के जीवन के लिए क्या सहयोग करते हैं ?

वास्तव में मनुष्य यदि अन्य प्राणियों से जुदा है या उसका विकसित समाज और सभ्यता है . तो उसके मूल में मनुष्य के शरीर में विद्यमान उन्नत मस्तिष्क का होना है . जो अन्य प्राणियों में उतना शक्तिशाली नहीं है .

यह  मनुष्य मस्तिष्क प्राणियों की तुलना में जीवन को अत्यंत अधिक सृजनशील और रचनात्मक बना सकता है .
अब अगर देखें तो मनुष्य भी आपस में बहुत अधिक उन्नत और बहुत पिछड़ जाने के अंतर से अलग पहचान और प्रतिष्ठा जीवन में हासिल कर पाते हैं . और जीवन में सफल और जीवन सार्थक होने की उपलब्धि इस तरह कुछ को मिलती है और बहुत वंचित भी रह जाते हैं .

किसी मनुष्य की सफलता बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करती है .. कि उसे प्राप्त उन्नत मस्तिष्क में उसके बचपन और शिक्षा काल में कितना सच्चा , तकनीकी ,वैज्ञानिक और नैतिक (इत्यादि ) ज्ञान डाला गया है . दूसरे शब्दों में मस्तिष्क की कितनी क्षमता सच्चे और सूक्ष्म ज्ञान के लिए उपयोग की गई है . मस्तिष्क का प्रयोग विनाश कारी या बुरे तरह के ज्ञान के लिए तो नहीं किया गया है
या शिक्षाकाल में उसे (मस्तिष्क को ) कम प्रयोग कर रिक्त तो नहीं छोड़ दिया गया है .

इन सबके लिए गुरु का दायित्व  बनता है . बच्चे का प्रथम गुरु माँ-पिता और परिवार होता है . बाद में स्कूल -कॉलेज के गुरु के ऊपर ये जिम्मेदारी होती है . जिन बच्चों को अच्छे गुरु और पूरी शिक्षा अवधि मिल पाती है . वे आगे अपने जीवन में ज्यादा सफल और सृजन कर देश समाज और मानवता के प्रति अपने कर्तव्य निभाते हैं .
गुरु ,पालकों ,देश और धर्म का नाम ऊँचा करते हैं .

इसलिए अच्छे शिक्षा तंत्र के लिए अच्छे शिक्षकों का होना अनिवार्य तो है ,साथ ही शिक्षारत बच्चे भी शिक्षा (ज्ञान ) के महत्व को जितना शीघ्रता और अच्छे से समझें .. उनके हित में होता है ...

गुरु और शिष्य के सयुंक्त प्रयत्न से  शिष्य सफलताओं के चरम पर पहुँच कर समाज  को  बहुत सुखी कर  सकते हैं  . या ऐसा ना हो पाने पर समाज  बहुत बुरा बन सकता है .

लेकिन क्षमता और सामर्थ्यवान युवाओं की अध्यापन में आज अरुचि दिखाई देती है .जिससे  भविष्य के अच्छे समाज की आशा में प्रश्न चिन्ह दर्शित होता है

 

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