नारी चेतना और सम्मान की रक्षा
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नहीं प्रसंग किसी वस्तु में पर लगा चित्र विज्ञापन में है तो
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नहीं प्रसंग किसी वस्तु में पर लगा चित्र विज्ञापन में है तो
दुकानों में नहीं होती पहले किन्तु बैठी सीट पर वह हो तो
कार्यालयों में नहीं होती पहले अब पहुँचती यदि वो हो तो
महाविद्यालय तक कम पहुँची थी वहाँ मिले वह भी तो
रास्तों पर मिलती ढकी सी थी अब निकले खुले सिर वह तो
पहले कहती कम वह थी चपल चर्चाओं भाग लेती अब वो तो
सकुचाती गृहसीमा सिमटी थी साथ कन्धा मिलाती अब वो तो
घर से निकल साथ भारतीय जाती अन्तरिक्ष तक वह अब तो
सभी को लगे जगह आकर्षक जहाँ मिलती नारी अब है तो
नारी की यह महिमा अगर और प्यारी हमें वह इतनी है तो
क्यों रखते उसे हम डराकर उसे क्यों करते शोषण उसका
क्यों करते अपमानित हम क्यों रोकते जन्म तक उसका
बदलें उन परिस्थितियों को हम जिसमें रहती वह डरी सी है
बदलनी सोच वह ख़राब करते उपयोग उसे हम वस्तु सा हैं
अपने दोहरे इन मानदंडों की हमें करना चाहिए पुर्नसमीक्षा
लायें व्यवस्था जिसमें हो नारी चेतना और सम्मान की रक्षा
--राजेश जैन
21-07-2013
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