Friday, July 19, 2013

समुद्र से घिरे एक छोटे की कहानी

समुद्र से घिरे एक छोटे की कहानी
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प्राचीन काल में समुद्र से घिरा एक छोटा देश था . जिसमें राजा अति विलासिता प्रिय था . उसे प्रजा से कोई प्रेम नहीं था . वह राजा होने के नाते उनके प्रति अपने कर्तव्य बोध से बेखबर अपने एशो आराम में रहना पसंद करता था . उसे उसके राज दरबारी देख कानाफूसी करते जिसकी भनक राजा को लगी तो उसे चिंता हुई . राजदरबारी विलासिता के किस्से फैलायेंगे तो वह अलोकप्रिय हो सकता है . किसी दिन सेना और जनता विद्रोह कर सकती है . और उसकी विलासिता संकट में पड़ सकती है .

उसने उपाय किया राज दरबारियों के और सेना वरिष्ठों के सुख-सुविधा ,निवास भवन में और वेतन में बहुत वृध्दि कर दी . खुश होकर राज दरबारियों ने कानाफूसी बंद कर  राजा के गुणगान आरम्भ कर दिए .
जिस तरह की चिंता पहले राजा की थी वह तो ख़त्म हो गई पर अब यह चिंता राज दरबारियों के और सेना वरिष्ठों को सताने लगी . राजा और हमारे विरुध्द जनता भड़क ना जाये .अन्यथा राजा को खतरा होगा . यह राजा बदला तो सब सुख-सुविधा में कमी हो जायेगी .

उन्होंने मिल बैठ उपाय किये . और सुरक्षा की दृष्टि से अनेकों नियम -कानून जनता पर लागू करवाने का प्रस्ताव राजा को आवश्यकता समझाते हुए रखा . राजा इस सूझबूझ पर खुश हुआ और फिर उसकी सहमति से देश में प्रस्तावित नियम-कानून लागू कर दिए गये .

उन नियमों के दायरे में किसी भी पेशे से धन -अर्जन करना कठिन हुआ तब अपनी समृध्दी -वैभव बढ़ाने के लिए कुछ लोगों ने इन्हें तोड़ने का दुस्साहस किया . जब सेना ने उन्हें नियमों का हवाला दे समझाया तो उनमें से कुछ ने सेना के समक्ष राजदरबारियों के ऐशो आराम और तुलना में अपने अभावों का विवरण रखा . सेना यह सोच प्रसन्न हुई कि राजा और स्वयं सेना पर इन्होनें ऊँगली नहीं उठाई है . अतः उन्हें नियमों के उल्लंघन के लिए दंड नहीं देते हुए . नियम विरुध्द अर्जित धन का कुछ हिस्सा स्वयं ले उन्हें छोड़ा . ये लोग थोडा देना पड़ा और ज्यादा बचा लिया गया सोच खुश हुए और अब उन्होंने नियम उपेक्षा कर धन -अर्जन करना अपने पेशे में सम्मिलित कर लिया .

धीरे धीरे कुछ और लोगों ने देखादेखी यही रास्ता अपने पेशे में शामिल कर लिया . लेकिन अब इसकी चर्चा राज्य में होने लगी . जो दुस्साहस ना कर सके और वंचित रहे उन्होंने जब तब इकठ्ठा हो चर्चाएँ प्रारम्भ कर दी . समृध्द हुए , सेना और राज  दरबारियों  को ये सभायें आशंकित करने लगी . विद्रोह हुआ तो सब सुख-सुविधा ना चली जाये .इस दृष्टि से समृध्दशाली , सेना और राज दरबारियों ने मिल मंत्रणा की उपाय निकाल प्रस्ताव राजा की स्वीकृति हेतु तैयार किया गया . राजा तर्कों से सहमत हुआ . और उसने  स्वीकृति दे दी .

दूसरे दिन से राज्य में हर मील पर मनोरंजन भवनों का निर्माण आरम्भ करवाया गया और दो महिनों में राज्य में नौ सौ से ज्यादा मनोरंजन स्थल प्रारम्भ कर दिए गए . जिनमें दिन और रात के अधिकाँश समय मनोरंजन के लिए नृत्य -गायन और प्रेम क्रीड़ा के दृश्य देखने के लिए उपलब्ध होने लगे . इससे उसमे कार्य करने वाले लोगों की आय भी बढ़ गई उनकी प्रतिष्ठा भी बदने लगी और इस तरह समृध्दी कुछ और लोगों के हिस्से में आ गई .

अब वंचित जो अभी भी अधिसंख्य ही थे . वे उन सभाओं को भूल गये जिनमें वैभव शाली लोगों के विरुध्द असंतोष की चर्चा होती थी .

वे उन मनोरंजन स्थलों की शोभा बढ़ाते . और अपने दुखड़े भूल मनोरंजन से मिलते सुख से संतोष करते .
लेकिन तब वंचितों की युवा होती पीढ़ी अभावों से विचलित हुई . वे विद्यालयों में इस पर चर्चा करने लगे . जो फिर समृध्दों के कानों तक पहुँची . उपाय फिर निकाला गया और कुछ ही दिनों में मनोरंजन के कार्यक्रमों में युवाओं को इनामों की राशि और उन्हें मनोरंजन कार्यक्रमों में कलाकार का अवसर दिलाते ,सब्जबाग दिखाते प्रस्तुतियां दिखाई जाने लगी . जिन्हें देख युवा अब वहाँ स्पर्ध्दा में भाग लेने लगे . जो थोड़े चयनित होते या इनाम जीतते उनकी समृध्दी बढती . शेष अपने को प्रतिभा हीन मान समझौता कर लेते ...

एक दिन समुद्र किनारे खड़े होकर एक दार्शनिक अपने देश की ओर निहारते हुए सोच रहा था ..
उसे लगा विलासिता को  पुष्ट करने वाली यह नीति -संस्कृति .. मानवता या समाजहित की दृष्टि से कहीं भी उचित नहीं लगती अतः इसका फैलाव किसी अन्य देश या विस्तार आगे के काल के लिए ठीक नहीं है .. वह चिंतित हो एक महात्मा के पास दौड़ा गया .
उनसे उन्होंने पूरा विवरण और अपनी आशंका सुनाई .."विस्तार अन्य देश या  आगे के काल तक गलत संस्कृति का " ना जाए ..
इस विचार से उन्होंने उस देश को विश्व मानचित्र से अदृश्य कर दिया ..
लाखों वर्ष संस्कृति से विश्व अछूता रहा .. ना जाने आधुनिक विकसित मनुष्य मस्तिष्क को कैसे इस अप -संस्कृति की भनक लग गई ..

--राजेश जैन
19-07-2013


 

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