Friday, July 5, 2013

भारतीय पुरुष - नारी अपेक्षा

भारतीय पुरुष - नारी अपेक्षा 
______________________
भारतीय पुरुष अपेक्षा को समझाने के लिए पहले हमें भारतीय परिवार को समझना होगा .. जो पचास वर्ष पूर्व हुआ करता था .एक युवा पुरुष के  परिवार में माँ -पिता (बुजुर्ग) ,पत्नी ,बहन (जिसका विवाह होना प्रतीक्षित ) और छोटे स्वयं के बच्चे होते थे . बहन और पत्नी से अपेक्षा गृहकार्य ,माँ-पिता की देखरेख और बच्चों लालन पालन की थी . स्वयं धन उपार्जन के लिए व्यवसायरत होने से जब घर में आये तो उचित महत्त्व अपेक्षा करता था . पत्नी और बहन से सद-चरित्रता और बाहरी पुरुषों से उचित दूरी निभाना भी अपेक्षा रखता था . जहाँ तक नारी (पत्नी-युवा बहन ) के दृष्टिकोण से देखें तो वो पुरुष के नित्य बाहर रहने की अभ्यस्त थी .और इस बात से भी बहुत सरोकार नहीं था कि जब स्वयं घर की नारी से विशेष कर सद-चरित्रता और बाहरी पुरुषों से उचित दूरी की अपेक्षा करता .. "यह पुरुष" ,दूसरी नारियों (घर के बाहर की ) जो उसके व्यवसाय और बाहर किसी के कारण संपर्क में आती हैं . 
उनके साथ उनके पारिवारिक पुरुषों की इसी तरह की अपेक्षा की रक्षा करने में कितना सहयोगी है या नहीं ?

आज परिदृश्य बदला ज्यादातर घरों में युवा पुरुष के साथ माँ -पिता और बहनें परिवार में साथ नहीं हैं .. पुरुष तो व्यवसाय /नौकरी के लिए घर से निकलता ही है . पत्नी भी निकल रही है . नारी क्योंकि पढ़ी लिखी होने लगी है . और गृहस्थी में लगने वाले आज के सुविधा -साधन और बच्चों की बढ़ी अपेक्षाओं की पूर्ती में अकेले पुरुष के द्वारा अर्जित धन उतना पर्याप्त नहीं होता इसलिए .

नारी (पत्नी)  तो पुरुष के नित्य बाहर रहने की अभ्यस्त थी ही लेकिन पुरुष के लिए नारी का बाहर निकलना नया है . एक तरफ नारी के अर्जित धन से गृहस्थी चलाना सरल हो रहा है तो घर में पहले की अपेक्षा बच्चों और गृहकार्य के लिए आठ -नौ घंटे की अनुपस्थिति उसे अखरती है . अखरने वाली एक और बात पुरुष के लिए यह भी है जितना possessiveness  (अधिपत्य भाव  ) वह पत्नी पर पचास वर्ष पूर्व  रख रहा था .बदले हुए परिदृश्य में उसमें बहुत कम ही बदलाव ला पाया . जबकि 8 घंटे घर के बाहर रहते हुए नारी भारतीय पुरुषों की इस अपेक्षा पूर्ती में विभिन्न कारणों से सफल नहीं हो पाती .

नारी तो एक तरह से बाध्य होकर गृह-देहरी पार कर बाहर आई है .  विशेषकर नन्हें शिशु या छोटे बच्चों की माँ तो अपने नन्हें बच्चे को अंक से जुदा कर सीने पर पहाड़ रख ही गृह से निकलती है . जब नारी-पुरुष ने मिलकर अपने गृह-व्यय और वैभव अपेक्षा बढाई है तो मिलकर ही भारतीय परिवेश से , परंपरागत मानसिकता से मेल खाता समाधान और एक उचित सामंजस्य व्यवहार में लाना होगा . 

इसलिए भारतीय परिवेश में वर्किंग वीमेन ( व्यवसायरत) के लिए प्रतिदिन के वर्किंग ऑवर - 4 करने से भारतीय परिवार और समाज को दोनों तरह से पुष्ट किया जा सकता है ..
एक ..बढ़ी पारिवारिक आय 
दो .. नारी का आत्मविश्वास और धन-उपार्जन क्षमता 
तीन .. बच्चों की उचित देखरेख और संस्कार .. 
चार .. पूर्वान्ह में ड्यूटी से ..घर के बाहर के नारी विरुध्द अपराधों की रोकथाम .
पाँच .. पुरुष अपेक्षापूर्ती में कमी के दुष्परिणाम से  परिवार बिखराव (divorce ) से  बचाना   .

हमें दुनिया के किसी अन्य हिस्से के रहन सहन के ढंग की ठीक वही नकल नहीं करना चाहिए . बल्कि हमारी परंपरा ,हमारी मानसिकता ,हमारी संस्कृति और हमारी धर्म मर्यादाओं के अनुरूप सिस्टम निर्धारण करना चाहिए ...

No comments:

Post a Comment